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कोबाल्ट 60 का स्रोत दिल्ली विश्वविद्यालय में मिला

पश्चिम दिल्ली के मायापुरी इलाके में एक व्यक्ति की जान लेने वाले रेडियोधर्मी कोबाल्ट 60 का स्रोत दिल्ली विश्वविद्यालय का रसायन विज्ञान विभाग है, जहां यह पिछले 25 वर्ष से बिना इस्तेमाल पड़ा था.

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पश्चिम दिल्ली के मायापुरी इलाके में एक व्यक्ति की जान लेने वाले रेडियोधर्मी कोबाल्ट 60 का स्रोत दिल्ली विश्वविद्यालय का रसायन विज्ञान विभाग है, जहां यह पिछले 25 वर्ष से बिना इस्तेमाल पड़ा था.

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पुलिस के अनुसार कोबाल्ट 60 एक ‘गामा इरैडिएटर’ में था, जिसे 1968 में कनाडा से लाया गया था और 1985 के बाद से इसे इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था. इस वर्ष फरवरी में हुई नीलामी के बाद एक कबाड़ी इसे मायापुरी ले आया था.

पुलिस के संयुक्त आयुक्त (दक्षिणी रेंज) अजय कश्यप ने कहा, ‘हमने दिल्ली विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में रेडियोधर्मी सामग्री का पता लगाया है. कबाड़ी जो उपकरण लाया था उनमें से एक गामा इरैडिएटर था.’ कश्यप ने बताया कि कबाड़ी ने कलपुर्जे को अलहदा किया और इस प्रोसेस में इसपर चढ़ी सीसे की परत हट गई और इससे रेडिएशन हुआ.

उन्होंने बताया, ‘1985 तक इस उपकरण का इस्तेमाल होता था और उसके बाद से यह एक कमरे में बिना इस्तेमाल पड़ा था. फरवरी में विश्वविद्यालय की समिति ने इसे बेचने का फैसला किया और मायापुरी का कबाड़ी बोली के जरिए इसे खरीद लाया.’ उन्होंने बताया कि शहर के एक अस्पताल में भर्ती चार कर्मचारियों को जब उपकरण की तस्वीर दिखाई गई तो उनमें से एक ने उसे पहचान लिया.

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{mospagebreak} अप्रैल के पहले सप्ताह में मायापुरी में उस समय दहशत फैल गई थी, जब 11 व्यक्ति रेडिएशन के प्रभाव में आ गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. कबाड़ी की जिस दुकान से कोबाल्ट 60 मिला था, उस दुकान के एक कर्मचारी की रेडिएशन के प्रभाव में आने के कारण मौत हो गई.

गामा इरैडिएटर का इस्तेमाल रेडिएशन प्रसंस्करण के काम में किया जाता है. जांच के एक चरण में ऐसा संदेह व्यक्त किया जा रहा था कि यह कबाड़ विदेश से लाया गया था. कुछ खबरों में यह भी कहा गया कि यह कबाड़ शहर के एक अस्पताल का मेडिकल कचरा है.

मायापुरी कबाड़ी बाजार में रेडिएशन के 11 स्रोत सामने आए, जहां इस महीने कोबाल्ट 60 मिला. कोबाल्ट 60 कोबाल्ट का रेडियोधर्मी समस्थानिक होता है, जो ठोस, चमकदार और सलेटी रंग की धातु है. इसका इस्तेमाल कैंसर थरेपी मशीनों और अन्य मेडिकल उपकरणों में किया जाता है.

रेडिएशन के बारे में उस समय पता चला, जब कबाड़ का कारोबार करने वाले दीपक जैन और उनके चार कर्मचारियों को रेडिएशन की चपेट में आने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया. आणविक उर्जा विभाग और भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के विशेषज्ञों ने कबाड़ी बाजार की 800 दुकानों की जांच की और कहा कि यह इलाका रेडिएशन से मुक्त है.

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{mospagebreak} पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) शरद अग्रवाल ने कहा कि गामा किरणों के रसायनों पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के प्रयोगों में इस उपकरण का इस्तेमाल किया जाता था. विश्वविद्यालय ने 26 फरवरी को इस उपकरण की नीलामी की थी. उन्होंने बताया, ‘इसे हरचरण सिंह भोला ने खरीदा था, जिसकी मायापुरी में डी2-80 नंबर की दुकान थी. उसने उपकरण से इस्पात का भाग हटा दिया और सीसे वाला भाग गिरीराज गुप्ता को बेच दिया, जिसकी डी-127 कबाड़ की दुकान थी.’

अग्रवाल ने बताया, ‘गुप्ता ने इसे अलग अलग करके इसके सीसे वाले हिस्से को किसी दूसरे कबाड़ी को बेच दिया. हालांकि उसने सीसे के नीचे लगे इस्पात वाले भाग को अपने पास ही रखा. हरचरण सिंह भोला ने गामा सैल का जो इस्पात वाला हिस्सा अलग किया था, वह राजिन्द्र के जरिए दीपक जैन तक पहुंचा. राजिन्द्र रेडियोधर्मिता के संपर्क में सबसे ज्यादा आया और बाद में उसकी मौत हो गई.’ उन्होंने बताया कि दो दिन पहले आणविक उर्जा नियमन बोर्ड से जो रिपोर्ट मिली थी उससे पुलिस को इस उपकरण के बारे में विस्तृत जानकारी मिली.

दीपक ने पुलिस को बताया कि उसने भोला से बड़ी मात्रा में सीसा खरीदा था, जिसके बाद उससे पूछताछ की गई. भोला ने पुलिस को बताया कि उसने दिल्ली विश्वविद्यालय में हुई नीलामी के दौरान एक बड़ी मशीन खरीदी थी, जिसमें भारी मात्रा में सीसा था.

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दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारियों से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि भोला, जिस मशीन के बारे में बात कर रहा है वह दरअसल गामा इरैडिएटर है, जिसे नीलामी के दौरान बेचा गया था.

इस उपकरण को आणविक उर्जा कनाडा लिमिटेड से खरीदा गया था और इसे रसायन विज्ञान विभाग के छात्रों के प्रयोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

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