मौसम विभाग के मुताबिक इस बार मानसून की बारिश सामान्य रहेगी. मानसून सीजन यानी जून से सितंबर के दौरान होने वाली बारिश इस बार 5 फीसदी की मॉडल त्रुटि के साथ 96 फीसदी रहने का अनुमान है. इसका सीधा सा मतलब ये है कि इस बार मात्रात्मक रुप से मानसून की वर्षा 5 फीसदी की मॉडल त्रुटि के साथ दीर्घावधि औसत यानी एलपीए का 96 फीसदी होने की संभावना है. मौसम विभाग के महानिदेशक केजे रमेश ने पूर्वानुमान जारी करते हुए कहा कि इस बार निकट सामान्य मानसून वर्षा होने की संभावना 38 फीसदी है.
सीनियर साइंटिस्ट ने क्या कहा
मौसम विभाग के सीनियर साइंटिस्ट डीएस पई ने बताया कि इस बार पिछले मानसून के अंतिम महीनों में कमजोर ला-नीना स्थितियां बनी. दिसंबर 2016 में ला-नीना अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंचा और इसके बाद इन स्थितियों में कमजोरी आनी शुरू हो गई. इस समय भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र में न्यूट्रल स्थिति बनी हुई है. ताजा अनुमानों के मुताबिक आने वाले मानसून सीजन के मध्य में कमजोर अलनीनों की स्थिति बन जाएगी. इस स्थिति को मानसून के लिए अच्छा नहीं माना जाता है.
कमजोर अलनीनो की स्थिति जुलाई के अंत से शुरू होकर सितंबर तक जारी रहने का अनुमान है. इससे मानसून की बारिश पर उल्टा असर पड़ने की आशंका गहरा गई है. लेकिन इन सबके बावजूद हिंद महासागर में समंदर के पानी में बनी परिस्थियां मानसून के लिए अच्छी मानी जा रही है. अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में पानी के तापमान में अंतर अगर पॉजिटिव है तो इसे मानसून के लिए फायदेमंद माना जाता है.
अल-नीनों होगा सामान्य मानसून के लिए खतरा
मौसम विभाग के मुताबिक प्रशांत महासागर के ऊपर समंदर के पानी का गर्म होना यानी अल-नीनों पैदा होना मानसून के लिए अच्छा नहीं है. लेकिन इन सबके बीच में भूमध्यरेखीय हिंद महासागर पर पॉजिटिव आईओडी का होना फायदेमंद है. इन दोनों कारकों का मानसून की स्थिति पर भारी प्रभाव देखा जाता है. लिहाजा मौसम विभाग इन दोनों मौसमी कारकों पर बारीक नजर रखे हुए हैं.
मौजूदा परिस्थियों में मौसम के जानकार मानसून सामान्य रहने की संभावना जता रहे हैं लेकिन आने वाले दिनों में अगर अल-नीनो की स्थिति मजबूत होती है तो सामान्य मानसून के लिए ये घातक होगा. मौसम विभाग जून की शुरुआत में एक बार फिर से मानसून की बारिश के वितरण के बारे में अपने पूर्वानुमान जारी करेगा और तभी इसकी स्थिति के बारे में सही-सही अंदाजा मिल पाएगा.