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व्यंग्य: 'शर्मनिरपेक्ष' मुलायम को जन्मदिन पर सप्रेम भेंट

आज धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन है,घनघोर समाजवादी मुलायम सिंह यादव खास लंदन से मंगाई गई विक्टोरियन बग्घी पर बैठकर पचहत्तर फीट का केक काटने पहुंचे उस वक्त शायद स्वर्ग से भावविह्वल होकर राममनोहर लोहिया जी की आत्मा भी आँखों में आँसू लिए फूलों की बारिश कर रही होगी.

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Mulayam Singh
Mulayam Singh

आज धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन है. घनघोर समाजवादी मुलायम सिंह यादव खास लंदन से मंगाई गई विक्टोरियन बग्घी पर बैठकर पचहत्तर फीट का केक काटने पहुंचे, तो उस वक्त राममनोहर लोहिया जी भी आंखों में आंसू लिए स्वर्ग से फूलों की बारिश कर रहे होंगे.

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अंग्रेजों से जाने इनकी क्या खुन्नस है? पर नेताजी को विक्टोरियन बग्घी में बैठाने और खुद की भैंसों को महारानी विक्टोरिया से ज्यादा चर्चित बताने की आड़ में आज भी आजम खान और ये अंग्रेजों से देश को गुलाम बनाने का बदला लेते रहते हैं. इटावा के सैफई गांव में 22 नवम्बर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव जन्म से ही 'सेक्युलर' थे या किसी पीर बाबा की दी भभूत चाटकर सेक्युलर हो पड़े ये बताना तो मुश्किल है. पर जानने वाले कहते हैं कि बचपन में कई बार सिर के बल गिरने के कारण एक रोज उन्हें गूमड़ के साथ 'सेक्युलरापा' भी हो गया.

सेक्युलरापा इतना भीषण कि खुद उनके बेटे की मानें तो इस दफा उनकी सरकार बनने के ठीक आठ महीने के अंदर ही 27 दंगे हो चुके थे.अब तो ये हाल है कि जब मुजफ्फरनगर दंगों के बाद राहत शिविर में बच्चे ठंड में कंपकंपा रहे थे,उस वक़्त नेताजी हिन्दू-मुस्लिम और वोट बैंक की राजनीति से दूर सैफई महोत्सव मना रहे थे. कम ही लोगों में इतना जिगरा होता है जो हर धर्म की लाश पर पूरी धर्मनिरपेक्षता से नाच सके.

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अक्सर सवाल उनके दो-दो जगहों से चुनाव लड़ने पर उठता है. तर्क ये रहता है कि अगर दोनों जगहों से हारे भी तो एक जगह हार का अंतर कम रहेगा. इस सोच के बाद भी 2003 में गुन्नौर से चुनाव लड़ने पर उन्हें रिकॉर्ड 1 लाख 85 हजार के लगभग वोट मिले. नेता जी ने 1967 में अपना पहला चुनाव जीता था. फिर वो लोक दल के अध्यक्ष बने, उसके बाद वो मुख्यमंत्री बने फिर वो जनता दल में चले गए और कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपके रहे.

फिर कांग्रेस से गठबंधन टूटने और बीजेपी से चुनाव हारने के दुख में उन्होंने समाजवादी पार्टी बना डाली और अपनी सौतेली बहन सरीखे नाम वाली 'बहुजन समाज पार्टी' से गठबंधन कर फिर चुनाव लड़ा और फिर कांग्रेस-जनता दल की मदद से मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद वो देश के रक्षा मंत्री बने, फिर बीजेपी की 'चुपके से दी पोंदी-पैय्या' से मुख्यमंत्री बन गए. फिर केंद्र में 2014 तक कांग्रेस को अन्दर-बाहर से समर्थन लेते-देते रहे. फिर तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी बन बैठे. कुल जमा भारत की राजनीति में जितनी जगह से भी जितनी पार्टियों से ये जुड़-घट सकते थे जुड़े-घटे. इनकी बदौलत ही 'समाजवादी' शब्द 'अवसरवादी' का पर्याय होने का सौभाग्य पा सका. ऐसे धरती से जुड़े धरतीपुत्र, स्पष्टवादी, मृदुभाषी, शर्मनिरपेक्ष 'लड़के हैं गलती हो जाती है' और 'यूपी की जनसंख्या के अनुपात में रेप कम ही हो रहे हैं' जैसा ज्ञान देने वाले नेताजी को प्रणाम और अवतरण दिवस की बधाइयां.

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(आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर और फेसबुक पर सक्रिय व्यंग्यकार हैं.)

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