देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के 143वें जन्मदिवस पर आजादी के बाद छोटी-बड़ी रियासतों में बंटे देश के एकीकरण के लिए उनके योगदान के लिए याद किया जा रहा है.
आजादी के साथ ही देश में बंटवारे की प्रक्रिया भी चल रही थी. ऐसे में लोगों के मन शंका थी कि 562 छोटी-बड़ी रियासतों बंटे देश को एक कैसे और कौन करेगा. लेकिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने अद्भुत प्रशासनिक क्षमता की मिसाल कायम करते हुए इन रियासतों का भारतीय संघ में विलय कराया. सरदार पटेल की मृत्यू 15 दिसंबर 1950 को हुई, तब तक अधिकतर रियासतें भारतीय गणराज्य का हिस्सा बन चुकी थीं, लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी थे, जिनका भारत में विलय होना अभी बाकी था.
जब सेना ने सिक्किम के शासक के महल पर किया कब्जा
भारत की आजादी के पहले सिक्किम को ब्रिटिश सरकार द्वारा विशेषाधिकार प्राप्त थे, जो कि अंग्रेजों के जाने के बाद समाप्त हो गए. आजादी के बाद यहां के शासक ताशी नामग्याल, स्थानीय पार्टियों और लोकतंत्र समर्थक दलों के प्रतिरोध के बावजूद सिक्किम को एक विशेष संरक्षित राज्य का दर्जा दिलाने में सफल हो गए. इसके तहत भारत सिक्किम का संरक्षक हुआ. इस दौरान भारत सिक्किम की बाहरी सुरक्षा, कूटनीति और संचार नियंत्रित करता रहा.
स्थानीय राजनीतिक दल जो लोकतंत्र समर्थक थे, चाहते थे कि सिक्किम भारत में मिल जाए. 1955 मे राज्य परिषद स्थापित किया गया, जिस पर पूर्ण नियंत्रण ताशी नामग्याल का था. यहां के राजा को ‘चोग्याल’ नाम से पुकारा जाता था. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, सिक्किम एक स्वतंत्र देश था. 1963 में शासक ताशी नामग्याल का निधन हो गया ,जिसके बाद उनके बेटे पालदेन थोंडुप नामग्याल को सिंहासन मिला.
चोग्याल राजा के गैरलोकतांत्रिक और अत्याचार का दौर सिक्किम देख चुका था. 1973 तक सिक्किम की राजनीतिक व्यवस्था आंतरिक कारण की वजह से टूट चुकी थी. 1974 में काजी लेनदूप दोरजी इस राज्य के प्रधानमंत्री बने. जिसके बाद काजी नें 1975 में भारतीय संसद से अनुरोध किया कि सिक्किम को भारत का एक राज्य स्वीकार कर उसे भारतीय संसद में प्रतिनिधित्व दिया जाए.
अप्रैल 1975 मे भारतीय सेना ने चोग्याल के महल को अपने कब्जे में ले लिया और राज्य की सीमाएं को बंद कर दिया. चोग्याल किसी भी हाल में भारत के साथ विलय नही करना चाहता था. जब वह विफल हो गया तो भारत छोड़ कर अमेरिका भाग गया. 14 अप्रैल 1975 को एक जनमत संग्रह का आयोजन किया गया जिसमें सिक्किम की 97.5 फीसदी जनता ने भारतीय गणराज्य में विलय का समर्थन किया. इसके बाद 16 मई 1975 को सिक्किम औपचारिक तौर पर भारत संघ का हिस्सा बन गया.
गोवा में हुई सशस्त्र कार्रवाई
1961 के गोवा का भारत में विलय दरअसल भारत के सशस्त्र बलों की कार्रवाई थी. जिसकी वजह से भारत पर पुर्तगाली शासन पूर्ण रूप से समाप्त हो गया. गोवा पर हुए इस सशस्त्र कार्रवाई का नाम ऑपरेशन विजय था. इस ऑपरेशन में वायु, जमीनी और सामुद्री हमलों द्वारा 451 सालों से चली आ रही पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन को समाप्त कर दिया गया.
इससे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कई बार कोशिश की कि गोवा भारत संघ का हिस्सा बन जाए, लेकिन बात नहीं बनी. नवंबर 1961 में जब पुर्तगाली सेना ने एक भारतीय बम बरसाए, तब भारत ने भी अपना आपा खो दिया और यह निर्णय लिया गया कि पुर्तगाली शासन को समाप्त करना है.
ऑपरेशन विजय के तहत करीब 30 हजार सैन्य बलों के साथ गोवा पर आक्रमण किया गया. 3 हजार पुर्तगाली सैनिक भारत की विशाल सेना के आगे टिक नहीं पाए. जिसके बाद पुर्तगाली गवर्नर ने अन्य देशों से मदद की गुहार लगाई.
लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन समेत अन्य किसी देश ने पुर्तगाल का साथ नही दिया. तब पुर्तगाली गवर्नर ने सफेद झंडा फहरा कर आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह गोवा भारत से जुड़ गया.
फ्रांस के नियंत्रण वाले पुड्डूचेरी का भारत में विलय
1850 में जब ब्रिटेन का पूरे भारत पर नियंत्रण हो गया, तब बर्तानी हुकूमत ने फ्रांसीसीयों को भारत कुछ हिस्सों में अपना नियंत्रण बनाए रखने की अनुमति दी. इसके तहत पॉन्डिचेरी, माहे, यनम, कराईकल और चन्दननगर पर 1954 तक फ्रांसिसियों का नियंत्रण रहा.
18 अक्टूबर 1954 को 178 व्यक्तियों वाले पॉन्डिचेरी नगर निगम और पंचायत में 170 लोगों ने आजादी के पक्ष में वोट किया जबकि 8 लोगों ने विपक्ष मे वोट किया. 1 नवंबर 1954 को फ्रांस के प्रभाव वाले क्षेत्रों का भारतीय संघ में हस्तांतरण हुआ, जिसके तहत पॉन्डिचेरी, यानम, माहे और कराईकल के चार परिक्षेत्र स्वतंत्र भारत के साथ एकीकृत कर दिए गये और पॉन्डिचेरी संघ शासित प्रदेश बन गया. हालांकि इस हस्तांतरण को वैधिक प्रामाणिकता तब मिली जब 16 अगस्त 1962 फ्रांस की संसद में भारत के साथ संधि पर हस्ताक्षर किए और इसी के साध भारत की धरती पर 185 साल पुराना फ्रांसीसी शासन खत्म हुआ.