नौ वर्ष की 'मिली'(बदला हुआ नाम) को भी दूसरे बच्चों की ही तरह रोज सुबह जल्दी उठना पड़ता है, और जल्दी-जल्दी तैयार होना पड़ता है. हालांकि अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह वह स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं होती, बल्कि काम पर जाने के लिए तैयार होती है.
मिली एक घर में खुद से आधी उम्र की एक अन्य बच्ची की देखभाल का काम करती है. जिस उम्र में अधिकांश बच्चे अपने स्कूली पोशाकों में सजे अपने-अपने स्कूल बस का इंतजार करते देखे जाते हैं, मिली अपने फटे-पुराने कपड़े में उन बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए गुजर जाती है. मिली ने बताया, 'मैं भी अपनी छोटी बहन की तरह पढ़ना चाहती हूं. लेकिन मम्मी कहती हैं कि मुझे काम करके उसकी मदद करनी चाहिए. मैं उनसे बहस नहीं करती. शायद कभी मैं पढ़ पाऊं.' 'बचपन बचाओ' आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता भुवन रिभु ने बताया कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में करीब 49 लाख बच्चे मजदूरी करने के लिए अभिशप्त हैं. रिभु ने बताया, 'ये तो सरकारी आकड़े हैं. सामाजिक संगठन तो ये आकड़े कहीं अधिक बताते हैं.'
जनगणना-2001 के अनुसार, देश में पांच से 14 आयुवर्ग के बीच 1.26 करोड़ बच्चे मजदूरी करते हैं. बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था 'क्राई' की निदेशिका विजयलक्ष्मी अरोड़ा ने बताया कि देश में 'बाल मजदूरी और बच्चों के अवैध व्यापार पर रोकथाम के लिए कोई सुनियोजित कार्यक्रम नहीं है.'
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, देश में 68 लाख लड़के और 58 लाख लड़कियां बाल मजदूरी की जाल में फंसी हुई हैं. रिभु ने बताया कि सर्वाधिक बाल मजदूर कृषि से जुड़े हुए हैं, जबकि दूसरे नंबर पर घरेलू बाल मजदूर हैं. इसके बाद कपड़ा उद्योग, कालीन उद्योग, बीड़ी उद्योग तथा चूड़ी उद्योग में सर्वाधिक संख्या में बाल मजदूरी कराई जाती है. अरोड़ा ने कहा, 'अधिकांश लोगों का मानना है कि खेती का काम बच्चों के लिए नुकसानदेह नहीं होता. लेकिन हम लोगों ने पाया कि कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों का इस्तेमाल कृषि मजदूरी करने वाले बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है.'
उन्होंने आगे कहा, 'बाल मजदूरी संरक्षण अधिनियम के तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से काम लेना अपराध है, लेकिन हमें समझना होगा कि 15 से 18 वर्ष के आयुवर्ग के बच्चे भी उतने ही समस्याग्रस्त होते हैं.' फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था चेतना के निदेशक संजय गुप्ता के अनुसार, 'सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार का रवैया इस मामले में बेहद अगंभीर है.' देश में शिक्षा के अधिकार के तहत छह से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की गई है, लेकिन अन्य सख्त कानूनों के अभाव तथा मौजूदा कानूनो के सख्ती से लागू न किए जाने के कारण बाल मजदूरी की समस्य दिन पर दिन विकराल रूप लेती जा रही है.
अरोड़ा का कहना है, 'बच्चों के लिए उच्च गुणवत्तायुक्त, फुल टाइम औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए. गरीब मां-बाप भी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. इसके अलावा समस्याग्रस्त परिवारों की पहचान और उनकी समस्या के समाधान की दिशा में भी काम करना होगा.'