मेरा स्कूल मेरे घर के पास था, सारे शिक्षक पापा के जानने-पहचानने वाले थे, इसलिए मेरी हर शिकायत या अच्छी बातें पापा तक बहुत जल्दी पहुंच जाती थी. मुझे यह बात कभी भी अच्छी नहीं लगी. मैं हमेशा स्कूल बदलना चाहती थी लेकिन पापा की जिद के आगे ऐसा कभी नहीं हो पाया.
हमारे स्कूल में एक कुआं था. ऐसे तो उस कुएं को मजबूत जाली से ढक दिया गया था. लेकिन हमारे स्कूल के सारे बच्चे अपने शिक्षकों से भी ज्यादा उस कुएं से डरते थे क्योंकि प्रार्थना के समय बहुत सारे सवाल अचानक किसी बच्चे से कर दिया जाता था, अगर कोई उस सवाल का जवाब देने में फेल हो जाए तो उसका पैर पकड़कर उसे कुएं में गिरा देने की धमकी दी जाती थी. बच्चों को कुएं से डराने के लिए हमारे यहां एक शिक्षक मौजूद थे, जो मार-पीट के लिए पूरे स्कूल में कुख्यात थे.
एक दिन मेरी भी बारी आयी, मैं उस दिन जितनी डरी थी उतना डर कभी नहीं लगा. मैं जोर-जोर से 'मम्मी-मम्मी' बोलकर रोने लगी. लेकिन दुर्भाग्यवश मेरे भी टांगे पकड़कर कुएं के पास ले जाया गया. जाली हटाई गई और कुएं के उस अंधेरे से डाराया गया. इसके बाद धमकी भी दी गई कि अगली बार जरूर गिरा दूंगा.
मैं चुपचाप डरी सहमी प्रार्थना से वापस क्लास आई. किताब लिया और स्कूल से भाग गई लेकिन घर नहीं गई. मौसी के घर जाकर वहीं दूसरे भाई-बहनों के साथ खेलने लगी. मैंने दो-तीन दिन तक यही तरीका अपनाया. रोज स्कूल के लिए निकलती थी लेकिन स्कूल नहीं जाती थी. तब फोन का जमाना भी नहीं था कि मौसी फोन करके मम्मी या पापा को बता दे. मौसा गांव में रहते नहीं थे, मौसी घर से निकलती नहीं थी. तीसरे या चौथे दिन मेरे पापा को किसी शिक्षक ने पूछ लिया 'नेहा की तबियत खराब तो नहीं हो गई है, वह स्कूल नहीं आ रही है'? पापा ने मुझे उसके बाद खोजना शुरू किया मैं उन्हें नहीं मिली. शाम को अपने तय स्कूल समय के मुताबिक मैं घर वापस आ गई. पापा ने पूछा कि स्कूल में आज क्या-क्या पढ़ाई हुई, मैंने कुछ रटी-रटाई चीजें बतानी शुरू की. दो-तीन शब्द बोलने के बाद ही गाल पर जोर का थप्पड़ पड़ा. वो तो मम्मी बचाने आ गई नहीं तो और ज्यादा पिटाई होती. उसके अगले दिन पापा खुद मुझे स्कूल छोड़ने गए. मैं क्लास में चुप-चाप रहने लगी थी, जो मेरे स्वभाव के खिलाफ था.
पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था. कॉपी-किताबें हर चीज मुझे फाड़कर फेंक देने का मन करता था. इसी समय हमारे स्कूल में बच्चों का ख्याल रखने वाले सिपाही जी (एक अन्य टीचर, गांव में वह इसी नाम से मशहूर थे) मेरी स्थिति समझ गए थे. शाम में स्कूल में छुट्टी होने के बाद वो मेरे पास आए और बोले 'चलो मेरे साथ तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं'. मैं अचानक बहुत खुश हुई. गई तो देखा कि मेरे पसंद की ढेर सारी चीजें वो लाए हुए थे. उन सारी चीजों को लेकर वो कुएं के पास गए. मुझे फिर से डर लगने लगा. उन्होंने मुझे कुएं में झांकने के लिए कहा और बोले अरे डरो मत याद रखो 'शिक्षक कभी भी कुएं में नहीं धकेलता है, जो शिक्षक कुएं में बच्चों को धकेलेगा, वो शिक्षक नहीं होगा. मैंने स्कूल के डायरेक्टर से बात कर ली है, उसने उस शिक्षक को डांटा है. अब किसी भी बच्चे को कुएं से नहीं डराया जाएगा.' मैं बहुत खुश हुई दोबारा मेरा मन पढ़ाई में लगने लगा था.
पूरे स्कूल में वो एक ऐसे व्यक्ति थे, जो सही मायने में शिक्षक थे. भले ही वो 'दूसरी कक्षा' तक के बच्चों को ही पढ़ा पाते थे, मगर ऐसा पढ़ाते थे कि उनका पढ़ाया कोई कभी न भूले. इसलिए हमारे स्कूल के सारे बच्चों के प्रिय शिक्षक वही थे. लेकिन स्कूल में उन्हें ज्यादातर शिक्षक एक चपरासी की नजर से देखते थे, क्योंकि वो बच्चों को पानी तक पिलाया करते थे. मेरे साथ पढ़ने वाले बच्चों को आज भले ही अपने शिक्षकों का नाम याद न हो लेकिन सिपाही जी जरूर याद होंगे. उनके आदर्श मेरी पढ़ाई की तरह आज भी मेरे साथ हैं. शिक्षक दिवस पर उनको सादर नमन.