जिंदगी में जीत-हार लगी रहती है और इसके साथ ही सफलता-विफलता भी. इसका पहला एहसास तब हुआ था जब मैंने 10वीं बोर्ड की परीक्षा दी थी. हर स्टूडेंट्स की तरह बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास होना मेरा भी सपना था. मगर जब रिजल्ट आया तो निराशा हाथ लगी. रिजल्ट आने के बाद मुझे ऐसा सदमा लगा कि मैंने मन में तय किया कि अब पढ़ाई नहीं करूंगी. मैंने यह मान लिया कि पढ़ने-लिखने का कोई फायदा नहीं है.
जब मेरा रिजल्ट आया था तब पापा किन्हीं कारणों से घर से बाहर गए हुए थे. हर एक पैरेंट्स की तरह मेरे मम्मी-पापा को भी मुझसे काफी उम्मीदें थीं. उन्हें विश्वास था कि मुझे अच्छे मार्क्स मिलेंगे. सच बताऊं तो अपने कम नंबर आने से ज्यादा डर मुझे इस बात का था कि पापा मेरे बारे में क्या सोचेंगे, मेरे दोस्त मेरा मजाक उड़ाएंगे.
यह सोचकर मैं अपने कमरे में बैठकर घंटों रोते रही थी. पता ही नहीं चला रोते-रोते कब सो गई. अचानक से जब नींद खुली तो बरामदे में से रेडियो बजने की आवाज आ रही थी. रेडियो पर किशोर कुमार का गाना, 'जिंदगी की यही रीत है, हार के बाद ही जीत है...' बज रहा था. ऐसा लगा जैसे कि यह गाना मेरे लिए बजाया गया था.
मैं कमरे से बाहर निकली तो देखा पापा रेडियो के पास बैठे हुए थे. हिम्मत नहीं हुई बाहर जाने की इसलिए वापस अपने कमरे में चली गई. पापा थोड़ी देर बाद मुस्कुराते हुए आए. उनके हाथों में मिठाई का एक डिब्बा था. पापा ने मिठाई मुझे खिलाई और पूछा, 'कॉलेज जाने के लिए साइकिल कब खरीदनी है?' मैंने रोते हुए कहा, 'मेरे अच्छे मार्क्स नहीं आए हैं, साइकिल खरीदकर क्या करूंगी?'
पापा ने जो जवाब दिया था वह मुझे अभी भी अच्छी तरह याद है. उनका कहा, 'तुम मेरी बेटी हो इतनी कमजोर नहीं हो सकती. एक छोटी सी परीक्षा भला तुम्हारे पूरे करियर को कैसे खराब कर सकती है? चंद सवालों से कोई सफल या असफल नहीं हो सकता है. असफल वे होते हैं जो परीक्षा से डरते हैं और मेहनत नहीं करना चाहते हैं.'
मैंने अपने पापा के उन शब्दों को हमेशा-हमेशा के लिए गांठ बांध लिया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैं जब भी निराश होती हूं या मुझे आगे की राह नहीं दिखती है तो मैं अपने पापा की बात को याद कर लेती हूं. पापा की बातें मेरे लिए जीवन का सक्सेस मंत्र है, जो मुझे कभी हारने नहीं देगा और कभी टूटने नहीं देगा.
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