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फुटपाथी बच्चों की जरूरतों में भोजन से ज्यादा अश्लील फिल्में अहम

एक अंधेरे गंदे कमरे में केवल एक ही चीज दिखाई देती है. टेलीविजन सेट से निकलती ब्लू रंग की रोशनी और उसके सामने किशोर वय और उससे भी कम उम्र के बच्चे पर्दे पर आंख जमाए हुए. कमरे से 'ओह' और 'आह' की आवाजें आ रही हैं.

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एक अंधेरे गंदे कमरे में केवल एक ही चीज दिखाई देती है. टेलीविजन सेट से निकलती ब्लू रंग की रोशनी और उसके सामने किशोर वय और उससे भी कम उम्र के बच्चे पर्दे पर आंख जमाए हुए. कमरे से 'ओह' और 'आह' की आवाजें आ रही हैं.

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पहली नजर में लगता है कि वे कोई हिंदी फिल्म देख रहे हैं, लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि असल में वे एक पोर्न फिल्म को देखने में मशगूल हैं. ये लड़के भगोड़े या घुमक्कड़ हैं, जिन्हें दिल्ली के कई चौराहों पर भीख मांगते या कचरा बीनते देखा जा सकता है. इन बच्चों के बीच काम करने वाले एनजीओ के मुताबिक, ऐसे बच्चों में से अधिकांश या तो पोर्न फिल्मों से या फिर वीडियो गेम्स से सम्मोहित हैं और अपनी अधिकांश कमाई इन्हीं चीजों पर खर्च कर डालते हैं. इन चीजों का आकर्षण ऐसा है कि वे खाना भी भूल जाते हैं.

विशाल कुशवाहा नाम के एक कचरा बीनने वाले बच्चे ने बताया, 'मैं वीडियो गेम्स खेलने के लिए घंटों बैठ सकता हूं या फिल्में देखता हूं. मैं इस पर 50 रुपये या इससे ज्यादा खर्च करता हूं. इसलिए मैंने बाहर खाना छोड़ दिया है और चाय और बीड़ी ही लेता हूं.

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17 वर्षीय कचरा बीनने वाला यह किशोर रोजना 150 से 200 रुपये कमाता है. कुशवाहा ने बताया, 'हम एक चाय दुकान में सिनेमा देखते हैं. वहां टेलीविजन सेट और डीवीडी प्लेयर है.' कुशवाहा के साथ एक दर्जन किशोर दक्षिणी दिल्ली के सराय काले खान में नियमित रूप से पोर्न फिल्म देखते हैं. अपनी इस आदत के लिए किसी तरह की झिझक का प्रदर्शन किए बगैर कुशवाहा ने बताया कि वह हर रात कम से कम दो से तीन अश्लील फिल्में देखता है.

लेकिन यह सिर्फ एक बच्चे की कहानी नहीं है. 13 वर्ष के अंकित का भी यही हाल है. वयस्क फिल्मों की दुनिया से उसका परिचय तब हुआ जब वह 10 वर्ष का था. उससे उम्र में दो वर्ष ज्यादा एक दोस्त ने पहली बार ऐसी फिल्म दिखाई थी. अंकित ने बताया, 'मेरे दोस्त ने मुझे इसकी जानकारी दी. अब हर सप्ताह मैं पोर्न क्लिप देखता हूं. अपने मोबाइल पर क्लिप डाउनलोड करने के लिए हम करीब 80 रुपये खर्च करते हैं. हमारे लिए खाना ज्यादा महत्व नहीं रखता.'

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