दिल्ली समेत एनसीआर में पराली जलाने से प्रदूषण स्तर का बढ़ना सामान्य बात है. चुनाव के पहले दिल्ली से लेकर हरियाणा, पंजाब तक यह मुद्दा गरमाया हुआ था. लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद इसे किसी दल ने मुद्दा नहीं बनाया है. आज के हालात ऐसे हैं कि पंजाब में पराली जलाई जाने लगी है और दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद खराब हो गया है, लेकिन चुनाव से यह मुद्दा पूरी तरह गायब है. राज्य पार्टियों से लेकर राष्ट्रीय पार्टियों तक हर कोई इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से बच रहा है. पंजाब में किसानों ने पराली जलानी शुरू भी कर दी है. बावजूद इसके पंजाब में इसका कोई शोर नहीं सुनाई दे रहा है.
2017 में दिल्ली के वायु प्रदूषण का स्तर सबसे खराब स्तर पर पहुचंने के बाद सियासी गलियारों में पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठने लगी थी. इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब और हरियाणा से इसे रोकने की अपील की थी. केजरीवाल की अपील का विरोध करते हुए तत्तकालीन आप नेता सुखपाल सिंह खैरा ने लुधियाना में किसानों के समर्थन में पराली जलाई थी. तब पंजाब के मुख्यमंत्री ने पराली जलाने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और इस पर अंकुश लगाने में असमर्थता जताई थी. उन्होंने कहा था कि किसान पहले ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं और पराली नष्ट करने के उपकरण इस्तेमाल करने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं.
पंजाब और हरियाणा में किसानों का सबसे ज्यादा वोट है और कोई भी पार्टी इस मुद्दे को छूने से डर रही है क्योंकि इस मुद्दे को उठाने का सीधा असर वोट पर पड़ेगा.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए पंजाब के कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू ने कहा 'ज्यादातर अधिकारी जो इसे रोकने के लिए जिम्मेदार हैं चुनाव में व्यस्त हैं. हम कैसे आदेश का पालन कर सकते हैं. जागरूकता अभियान जारी है और किसानों को पराली से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा रहा है.'
पंजाब और हरियाणा में अगर खेतों में आग लगाई जाती है तो वहां न ही दिल्ली की तरह बिल्डिंग हैं, न ही वहां इतना कंस्ट्रक्शन चलता है, न ही वहां प्रदूषण का स्तर पहले से ही खराब है. ये तीनों बातें दिल्ली को इसलिए भी खतरे में डालती हैं क्योंकि पंजाब से डाउनविंड यानी दक्षिण-पूर्व की ओर बहने वाली हवा असल में दिल्ली से होकर जाती है. यानी पंजाब का धुआं उड़कर दिल्ली आ जाता है. दिल्ली की हवा वैसे ही भारी है क्योंकि यहां प्रदूषण ज्यादा है और यहां आने के बाद हवा ठहर जाती है क्योंकि दिल्ली की हवा में धूल के कण ज्यादा हैं. इससे एक कोहरे जैसी परत बनती है जो असल में कोहरा नहीं बल्कि प्रदूषण होता है.
सूत्रों ने बताया कि नेताओं ने अधिकारियों को किसानों के खिलाफ कार्रवाई करने से मना कर दिया है क्योंकि चुनावी मौसम में कोई भी किसानों को नाराज करना नहीं चाहता है. फतेहाबाद के किसान जोगिंदर ने बताया कि पराली जलाना बेहद जरूरी है. जबतक हम पराली नहीं जलाएंगे हमें अच्छी फसल नहीं मिलेगी. सरकार हमारी मदद करने के लिए कभी आगे नहीं आती. पराली काटने की मशीनें बहुत महंगी आती हैं जिन्हें किसान खरीद नहीं सकता.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उन किसानों को मुआवजा देने के लिए कहा था जो मशीन या उपकरण खरीदने में असमर्थ हैं. एनजीटी ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से पराली जलाने के मामले पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी है.
देश में लोकसभा की 543 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं. अब तक 6 चरणों के मतदान हो चुके हैं और आखिरी चरण के मतदान 19 मई को होंगे. इसी चरण में पंजाब में भी चुनाव होना है, लेकिन क्या नेताओं की चुप्पी का असर जनता को पड़ेगा?
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