गर्म और नम मौसम से अकेले कोरोना वायरस के फैलाव पर ब्रेक लगने की संभावना नहीं है. एक नई रिसर्च से ये बात सामने आई है. इस रिसर्च का कहना है कि आबोहवा से जुड़े हालात तभी भूमिका निभा सकते हैं जब भविष्य में होने वाली महामारियों को लेकर आबादियों के बड़े हिस्से में पहले से ही इम्युनिटी (प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा) विकसित हो जाए.
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स की रिपोर्ट के मुताबिक COVID संक्रमण में गर्मी से कोई उल्लेखनीय कमी होगी, ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती, कम से कम मौजूदा महामारी की लहर में तो ऐसा नहीं होगा. इस रिपोर्ट का PEER-REVIEW (समकक्ष की ओर से समीक्षा) हो चुकी है. ये स्टडी साइंस जर्नल में सोमवार को प्रकाशित हो चुकी है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "हमारे निष्कर्षों के मुताबिक कारगर नियंत्रण उपायों के बिना नम माहौल और गर्म मौसम से महामारी के फैलाव पर काबू नहीं पाया जा सकता. शोधकर्ताओं ने आगाह किया कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों की आबादियां अभी भी वायरस के निशाने पर हैं. स्टडी में पाया गया कि संक्रमण की मौजूदा दर पर स्थानीय आबोहवा का कोई खास बदलाव नहीं देखा गया.
मेथेडोलॉजी
शोधकर्ताओं ने तीन अलग-अलग परिदृश्यों में लिए बनावटी स्थितियों (सिमुलेशन्स) को तैयार किया. इसका मकसद ये देखना था कि अलग-अलग आबोहवाओं में वैश्विक महामारी किस तरह का रिस्पॉन्स देती है. ये मॉडल अतीत में इंफ्लुएंजा वायरस, ह्यूमन कोरोना वायरस HKU1 और ह्यूमन वायरस OC43 जैसे समान वायरसों के फैलाव पर मौसमी विभिन्नताओं के असर से जुड़े ऐतिहासिक डेटा पर आधारित है.
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HKU1 और OC43 आमतौर पर सामान्य ठंड (कॉमन कोल्ड) की तरह ही ऊपरी श्वसन तंत्र की हल्की और मध्यम बीमारियों को ही जन्म देते हैं. स्टडी में नोवेल कोरोनो वायरस को अलग-अलग तीन काल्पनिक परिदृश्यों के तहत रखा गया. ऐसा ये देखने के लिए किया गया कि क्या हर परिदृश्य में वायरस पर आबोहवा को लेकर समान संवेदनशीलता दिखाई देती है. स्टडी में तापमान और आद्रता (नमी) के विभिन्न स्तरों पर COVID-19 के व्यक्तिगत बर्ताव पर शोध नहीं किया गया.
निष्कर्ष
नतीजों से पता चला कि आबोहवा का तब ही हल्का असर देखा गया जब आबादी के बड़े हिस्से में वायरस को लेकर पहले से कुछ इम्युनिटी या प्रतिरोध था. जो कि COVID-19 के मामले में अभी तक नहीं देखा गया है. रिसर्च लीड ऑथर डॉ राशेल बेकर ने कहा, "हमारा अनुमान हैं कि गर्म या अधिक नम आबोहवा महामारी की शुरुआती स्टेज में वायरस की रफ्तार को धीमा नहीं करेगी. वायरस तेजी से फैलेगा, चाहे आबोहवा कैसी भी हो.”
रिसर्च के मुताबिक वैक्सीनेशन या शारीरिक रूप से दूरी बनाने जैसे दखलों के बिना सदर्न हेमीस्फेयर (दक्षिणी गोलार्ध) में वायरस के फैलाव के धीमा होने की संभावना नहीं है. एक बार जब एक बड़ी आबादी वायरस को लेकर इम्युन (प्रतिरक्षित) हो जाती है, तो नोवेल कोरोनो वायरस दूसरे ह्यूमन कोरोना वायरस की तरह बर्ताव करना शुरू कर सकता है, जो सर्दियों में ज्यादा पाए जाते हैं.
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रिसर्चर्स का सुझाव है कि अगले कुछ महीनों में COVID-19 के वक्र कई ज्ञात और अज्ञात फैक्टर्स से प्रभावित होंगे जैसे कि सोशल-डिस्टेंसिंग उपाय, इम्युन रिस्पॉन्स और संक्रमण के बाद मानव आबादी में "इसकी तीक्ष्णता और अवधि". प्रिंसटन स्टडी को ‘कोऑपरेटिव इंस्टीट्यूट फॉर मॉडलिंग द अर्थ सिस्टम’, ‘प्रिंसटन एनवायरमेंटल इंस्टीट्यूट’ और ‘प्रिंसटन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड रीजनल स्टडीज’ की ओर से समर्थन दिया गया. कोरोना वायरस फैलाव को लेकर इम्युन रिस्पॉन्स के अध्ययन के लिए वैश्विक कोशिश भी जारी है.