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समलैंगिकता के इलाज के लिए मेडिकल रिसर्च हो: स्वामी

स्वामी ने कहा कि होमोसेक्सुअल हिंदुत्व के खिलाफ है और ये भारतीय समाज के लिए सामान्य बात नहीं है, हम इसकी सराहना नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ठीक पहले स्वामी ने कहा कि होमोसेक्सुअल को लेकर मेडिकल रिसर्च की जरूरत है

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सुब्रमण्यम स्वामी
सुब्रमण्यम स्वामी

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समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी बताने वाली आईपीसी की धारा 377 पर आज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. इस बीच बीजेपी के सीनियर नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने होमोसेक्सुअल का खुलकर विरोध किया है.

स्वामी ने कहा कि होमोसेक्सुअल हिंदुत्व के खिलाफ है और ये भारतीय समाज के लिए सामान्य बात नहीं है, हम इसकी सराहना नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई ठीक पहले स्वामी ने कहा कि होमोसेक्सुअल को लेकर मेडिकल रिसर्च की जरूरत है. उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए कोर्ट से 7 या 9 जजों की बेंच नियुक्त करने की अपील करे. इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की चार हफ्ते के लिए सुनवाई टालने के आग्रह को ठुकरा दिया है.

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समलैंगिकों को आम बोलचाल की भाषा में एलजीबीटी (LGBT) यानी लेस्ब‍ियन (LESBIAN ), गे(GAY), बाईसेक्सुअल (BISEXUAL) और ट्रांसजेंडर (TRANSGENDER) कहते हैं. वहीं कई और दूसरे वर्गों को जोड़कर इसे क्व‍ियर (queer) समुदाय का नाम दिया गया है. QUEER यानी अजीब या विचि‍त्र, लेकिन क्या अजीब या विचि‍त्र होने की वजह से उसे अपराध मान लिया जाए. धारा 377 के खिलाफ पूरी बहस इसी पर टिकी है.

वहीं एलजीबीटी समुदाय का कहना है कि समलैंगिक संबंध कहीं से भी अप्राकृतिक नहीं हैं. यह कई जानवरों की तरह इंसानों में भी एक आम स्वभाव है. धारा-377 इस देश में अंग्रेजों ने 1862 में लागू किया था. इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है.

दरअसल धारा 377 पर कई सालों से देशभर में बहस छिड़ी है, उसके तहत अप्राकृतिक संबंध बनाने के मामले में पिछले लगभग 150 सालों में सिर्फ 200 लोगों को ही दोषी करार दिया गया है.

जिस पर साल 2009 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दो व्‍यस्‍क आपसी सहमति से एकांत में समलैंगिक संबंध बनाते है तो वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा कोर्ट ने सभी नागरिकों के समानता के अधिकारों की बात की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में हाईकोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया था, सर्वोच्च अदालत ने कहा जबतक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता.

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