जनसंघ की स्थापना से लेकर बीजेपी के अब तक के इतिहास में 2014 पार्टी के लिए सुनहरा साल साबित हुआ. बीजेपी ने पहली बार लोकसभा में अपने दम पर पूर्ण बहुमत पाया. साथ ही एक के बाद एक विधानसभाओं में भी अपने परचम लहराते हुए कांग्रेस को पीछे धकेलकर वह देश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गई.
कर्नाटक के रूप में दक्षिण भारत में अपनी पहली और एकमात्र सरकार 2013 में गंवाने के बाद बीजेपी ने 2014 के पहले राउंड में हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की. इन तीनों राज्यों में पहले से भी अच्छे प्रदर्शन के साथ जीत हासिल करने से उत्साहित बीजेपी नेतृत्व ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा उछाला. इसके बाद नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने ऐसी जीत दर्ज की, जो इससे पहले कांग्रेस के अलावा कोई पार्टी हासिल नहीं कर सकी. दरअसल, 1977 में जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था, लेकिन वह कई दलों का जमावड़ा थी.
बीजेपी ने न केवल पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल किया, बल्कि खंडित जनादेश के चलते केन्द्र में 30 साल से चली आ रही गठबंधन सरकार की मजबूरी को भी समाप्त कर दिया.
बीजेपी के लिए इस साल की शुरुआत ही नहीं, अंत भी भला साबित हुआ. महाराष्ट्र और हरियाणा को जीतकर वहां अपनी सरकारें बनाने के बाद पार्टी ने साल बीतते-बीतते झारखंड में भी जीत का झंडा गाड़ दिया. यही नहीं, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में वह 28 सीट जीतने वाली पीडीपी के बाद 25 सीट जीतते हुए दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस राज्य में भी उसने अपने अब तक के इतिहास में सबसे अधिक सीट बटोरी हैं. वह अब वहां सरकार बनाने की दौड़ में शामिल है.
उत्तर भारत, पश्चिम भारत और मध्य भारत के अधिकतर राज्यों में अपना परचम फहराने के बाद बीजेपी अब पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल पर नजर डालते हुए ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को कड़ी चुनौती देती नजर आ रही है.
बीजेपी की अब तक की ‘अजेय’ बढ़त को देखते हुए विपक्षी दल संयुक्त रूप से उसका सामना करने की रणनीति बनाने को मजबूर हुए हैं. इसके चलते ‘जनता परिवार’ के दल बिहार विधानसभा चुनाव में उसका सामना करने के लिए एकजुट हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश के लिए भी ऐसी तैयारी है. लोकसभा चुनाव में मोदी के करिश्माई नेतृत्व और उनके विकास, कालाधन वापस लाने, रुपये की कीमत गिरने से रोकने, भ्रष्टाचार समाप्त करने, साम्प्रदायिकता की बजाय सामाजिक समरसता बनाने के वादों से प्रभावित होकर देश की जनता ने बीजेपी के पक्ष में बढ़-चढ़कर जनादेश दिया. लेकिन सरकार बनने के छह महीने बाद ही मोदी सरकार पर ‘वादा खिलाफी’ के आरोप लगने लगे हैं. ये सवाल उठने लगे हैं कि सत्ता में आने के 100 दिन के भीतर कालाधन वापस लाने के वादे का क्या हुआ.
बीजेपी के सत्ता में आने के साथ ही उसके विशाल संघ परिवार से जुड़े कुछ संगठनों और कुछ पार्टी नेताओं द्वारा ही देश के कई क्षेत्रों में कथित जबरन धर्मान्तरण या ‘घर वापसी’ के कार्यक्रम आयोजित करने से उसके विकास और सामाजिक समरसता के वादे पर भी सवाल उठने लगे हैं. धर्मान्तरण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान की मांग को लेकर संसद के दोनों सदन आंदोलित रहे. लेकिन सरकार ने विपक्ष की मांग मानने से इनकार कर दिया.
इस मामले में राजनाथ सिंह, एम वेंकैया नायडू और सुषमा स्वराज जैसे वरिष्ठ मंत्रियों ने धर्मान्तरण पर रोक लगाने का प्रस्ताव करके मोदी सरकार के नजरिए को साफ किया है. विपक्षी दलों ने हालांकि इस प्रस्ताव को यह कर खारिज कर दिया है कि यह भारतीय संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है, जिसमें किसी धर्म का प्रचार करने या अपनाने की आजादी दी गई है. संविधान ने धर्मान्तरण पर रोक नहीं लगाई है, बल्कि ऐसा जबरन या लालच देकर किए जाने पर प्रतिबंध है.