दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में काकापोरा गांव में आदिल डार के घर की दीवार पर एके 47 के साथ उसकी तस्वीर चस्पा है. आसपास के लोग परिवार के प्रति संवेदना जताने के लिए वहां एकत्रित हैं. यह जगह वहां से ज्यादा दूर नहीं है, जहां आदिल डार ने विस्फोटक से लदी गाड़ी से सीआरपीएफ की बस में टक्कर मारी थी जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे.
मौसम थोड़ा सर्द है और ठंडी से बचने के लिए घर के बाहर एक टेंट लगा हुआ है. यहीं पर पुरुषों के बीच कश्मीरी पोशाक में एक बुजुर्ग आदमी कालीन पर बैठा हुआ है. ये आदिल डार के पिता गुलाम हसन डार हैं. लोग एक-एक करके आ रहे हैं और उनसे संवेदना जताकर चले जा रहे हैं. इनमें कई ऐसे लोग भी हैं जो उन्हें 'मुबारक' बोल रहे हैं. यह गांव पहले से आतंकी गतिविधियों का गढ़ रहा है.
यह वही जगह है, जहां से लश्कर-ए-तैयबा के अबू दुजाना का ताल्लुक रहा है. सुरक्षा बलों की एक कार्रवाई में दुजाना मारा गया था. सीआरपीएफ पर हमले के बाद इंडिया टुडे ने लोगों का मूड भांपने के लिए इस संवेदनशील गांव की यात्रा की और फिदायीन के पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से बात की.
गुलाम डार ने कहा, 'हम सीआरपीएफ के जवानों की मौत पर खुशी नहीं मना रहे हैं. हम परिवारों के दर्द को समझते हैं क्योंकि कश्मीर में हम वर्षों से हिंसा झेल रहे हैं.' गुलाम डार कश्मीरी में बोल रहे थे जिसका अंग्रेजी में तर्जुमा उनके भतीजे और आदिल का चचेरा भाई उमर कर रहा था. उमर दो साल तक संयुक्त अरब अमीरात में काम कर चुका है. आजकल वह श्रीनगर में रहता है और उसने बताया कि वह अभी बेरोजगार है.
शोक सभा के बीच जहां एक मौलवी ने नमाज पढ़ी, वहीं अन्य बच्चे भी इसमें शामिल हुए. काकापोरा और आस-पास के गांवों में युवाओं को अत्यंत कट्टरपंथी कहा जाता है. सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के सफाए के लिए यहां नियमित तौर पर अभियान चला रखा है.
गुलाम डार कहते हैं कि, 'मैं युवाओं को कोई संदेश नहीं देना चाहता, लेकिन सरकार से इतनी अपील जरूर कर सकता हूं कि वह इस खून-खराबे और हिंसा को खत्म करने के लिए कोई रास्ता निकाले. सरकार इन युवाओं को ऐसे रास्ते पर जाने से रोके.' वह याद करते हैं कि कैसे पिछले साल 18 मार्च को उनका बेटा आदिल अचानक लापता हो गया था. आदिल को खोजने की परिवार ने काफी कोशिश की. वह कहते हैं कि उसकी गुमशुदगी के बारे में दीवारों पर लिखवाया गया ताकि वह लौट आए. बाद में परिवार को अहसास हो गया कि उनका 20 साल का बेटा आतंक के रास्ते पर जा चुका है.
आदिल के चचेरे भाई उमर ने बताया कि हमने बहुत कोशिश की कि वह वापस आ जाए और इसके लिए हमने सोशल मीडिया पर भी अपील की, लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आया.
बताया जा रहा है कि आदिल तीसरे दर्जे का आतंकवादी था. वह पत्थरबाजी करने वाले समूह में भी शामिल रहा है, लेकिन वह एक लो प्रोफाइल आतंकवादी था जो पिछले साल ही आतंकी संगठन में भर्ती हुआ था. इसीलिए वह सुरक्षा बलों के रडार पर भी नहीं था और शायद इसी वजह से वह इतने बड़े हमले को अंजाम देने में कामयाब रहा. उमर का कहना है कि आदिल ने पैसों की खातिर आतंकी संगठन में शामिल नहीं हुआ था क्योंकि उसका परिवार आर्थिक तौर पर ठीक ठाक है. उसकी दिली ख्वाहिश थी कि वह हायर एजुकेशन हासिल करे.