सुकना भूमि घोटाला मामले में कोर्ट मार्शल का सामना कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल पीके रथ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में आरोप लगाया है कि उनके उप सेना प्रमुख नामित किये जाने के बाद पूर्वी कमान ने सिर्फ दुर्भावपूर्ण इरादों के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई करने लिये कदम उठाया है.
रथ ने यहां उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में दलील दी है कि उन्हें इस मामले में निशाना बनाया गया है और उनके खिलाफ लगाये गये आरोप पहले ही तय कर लिये गये थे. रथ ने बृहस्पतिवार को दायर की गई 24 पृष्ठों की अपनी याचिका में कहा है कि कैबिनेट की नियुक्ति मामलों की समिति द्वारा उन्हें उप सेना प्रमुख के पद पर प्रोन्नत करने को मंजूरी दिये जाने के बाद सेना प्रमुख के रूप में नामित लेफ्टिनेंट जनरल वीके सिंह के नेतृत्व में पूर्वी कमान ने उनके खिलाफ ‘कोर्ट ऑफ इनक्वायरी’ कायम करने के लिये कदम उठाया है.
उन्होंने दलील दी है कि उनके द्वारा उप सेना प्रमुख का पदभार ग्रहण किये जाने के ठीक पहले उन्हें कोलकाता स्थित मुख्यालय से संबद्ध करने का आदेश देना अत्यधिक भेदभावपूर्ण और मनमाना आदेश है. रथ ने वीके सिंह की भूमिका पर छींटाकशी करते हुए कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को ‘डेप्यूटी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ’ का पद भार ग्रहण करने से रोकने के लिये दुर्भावपूर्ण नियत के साथ सम्बद्ध करने का आदेश जारी किया गया.’’
पूर्व सैन्य सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अवधेश प्रकाश के साथ रथ उस मामले में कोर्ट मार्शल का सामना कर रहे हैं, जिसके तहत सेना ने एक निजी रियल एस्टेट व्यवसायी को दार्जीलिंग स्थित सुकना सैन्य छावनी से सटे 71 एकड़ भूमि को एक शैक्षणिक संस्थान बनाने के लिये अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया था. रथ ने कहा है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाये गये आरोप पूर्व निर्धारित थे और यहां तक कि याचिकाकर्ता को सेना नियमों के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करने का मौका दिये बगैर ये आरोप लगाये गये.
उन्होंने कहा कि इस मामले में दोषी पाये गये अन्य अधिकारी जहां अपने पद पर बरकरार हैं, वहीं उन्हें 33 वीं कोर कमांडर से हटा दिया गया. गौरतलब है कि यदि सेना की जांच में रथ को दोषी पाया जाता है तो उन्हें कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ सकता है, जबकि प्रकाश सहित अन्य अधिकारियों को इससे अपेक्षाकृत नरम कदम अर्थात प्रशासनिक कार्रवाई का सामना करना पड़ा.