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पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन बोलीं- आजम खान ने समूचे सदन का अनादर किया

सुमित्रा महाजन ने कहा कि 'ऐसे बयान किसी बहन के लिए नहीं दिए जाते. उन्हें माफी मांगनी चाहिए. इस बारे में उनकी पार्टी को सोचना चाहिए.

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लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन (फाइल फोटो)
लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन (फाइल फोटो)

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लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पर चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान की एक आपत्तिजनक टिप्पणी पर सदन में सत्ता पक्ष की ओर से घोर हंगमा हुआ. कुछ समय बाद आजम खान लोकसभा की कार्यवाही बीच में ही छोड़कर चले गए. इस मुद्दे पर लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन का भी बयान आया है. महाजन ने कहा कि उन्होंने (आजम खान) समूचे सदन का अनादर किया है.

सुमित्रा महाजन ने कहा, 'कुछ नियम हैं जिनका उन्हें (आजम खान) पालन करना चाहिए था. मैं ऐसा नहीं कह रही हूं कि उन्हें दंडित किया जाना चाहिए लेकिन उन्हें अपने बयान पर खुद गौर करना चाहिए. संसद में आप जो कुछ भी बोलते हैं, उसका आपको काफी ख्याल रखना चाहिए. कई बार ऐसा होता है कि लोग दूसरे से आमने सामने बात करने लगते हैं जबकि उन्हें हमेशा कुर्सी (चेयर) की तरफ देखकर बोलना चाहिए. आज उन्होंने किसी महिला का अनादर नहीं किया बल्कि पूरे सदन का अनादर किया है.'  

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पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा, 'उन्हें (आजम खान) संसद से बर्खास्त किया जाना चाहिए और उन्हें विशेष ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिए. आज अखिलेश जी के साथ क्या हुआ? आप चेयर को कितना सम्मान देते हैं यह काफी मायने रखता है, इसलिए चेयर की तरफ देखकर बोलने को कहा जाता है. उन्हें खुद अपनी गलती पर गौर करना चाहिए था. इसके लिए ट्रेनिंग शुरू की जानी चाहिए. इन्हें नैतिकता पढ़ाई जानी चाहिए. आपत्ति भाषा को लेकर नहीं है बल्कि क्या बोला गया और कैसे बोला गया, यह देखने वाली बात है.'

सुमित्रा महाजन ने कहा कि 'ऐसे बयान किसी बहन के लिए नहीं दिए जाते. उन्हें माफी मांगनी चाहिए. इस बारे में उनकी पार्टी को सोचना चाहिए कि जब तक वे माफी नहीं मांगते, उन्हें सदन में बोलने की इजाजत नहीं देनी चाहिए. इस कड़वाहट की वजह क्या रही, इसके बारे में मुझे नहीं पता. आपकी जिंदगी में कुछ रिश्ते हैं जिसका आदर किया जाना चाहिए. समाज कल्याण के लिए जब भी कोई मुद्दा उठाया जाता है तो लोग इसके खिलाफ बोलना शुरू कर देते हैं. बदलाव हर कोई स्वीकार नहीं करता लेकिन हमें समाज कल्याण के लिए जैसा भी हो, वैसा स्वीकार करना होता है.'

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