साल 2016 की गर्मी छुट्टियां खत्म होने की कगार पर हैं. बड़े होने के साथ-साथ हमसे सबसे पहले छुट्टियों की सुविधा छिन जाती है. हम दफ्तर से घर और घर से दफ्तर के बीच कहीं रह जाते हैं. सुबह उठ कर दफ्तर जाने की तैयारी करना और रात को दफ्तर से वापस आने पर निढाल होकर गिर पड़ना. कुछ यूं ही जिंदगी तमाम हो रही है, मगर हमेशा से ऐसा नहीं था...
एक वो भी दौर हुआ करता था जब हमें गर्मी की छुट्टियों में 'समर टास्क' मिला करता था. सारे अलग-अलग सब्जेक्ट के टीचर्स द्वारा बारी-बारी से दिया गया टास्क. भूगोल के टीचर द्वारा राज्य, भारत, एशिया और दुनिया के अलग-अलग देशों के नक्शे बनाने को कहा जाना. संस्कृत के श्लोक और अंग्रेजी के टीचर द्वारा वर्ब के अलग-अलग फॉर्म्स को याद करवाना. मैथ्स का इतना टास्क कि बस शामत आ जाती थी.
साइंस तब भी सबसे कम रास आने वाला सब्जेक्ट था और न्यूटन तो जैसे इस दुनिया में हम बच्चों से दुश्मनी के लिए ही आया था. रही-सही कसर आइंस्टीन पूरी कर दिया करता. तिस पर से हिस्ट्री में अकबर-बाबर की वंशावली और हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाई जाने वाली वस्तुएं किसी के लिए खोज और प्रशस्ति की वजह थीं, तो वहीं हमारे लिए एक और थकाऊ और उबाऊ फैक्ट जिसे याद रखने में हमारे दिमाग की दही हो जाती थी.
इन तमाम झंझावतों के बावजूद हम थे और हमारा बचपन था. उन दिनों टेलीफोन और मोबाइल आम नहीं हुए थे. हम किताबों, नोट्स और इन्हीं समर-विंटर टास्क की मदद से किसी के नजदीक आया करते. कभी इन कॉपियों के बीच रखे फूलों की वजह से तो कभी इनके भीतर आदान-प्रदान किए जाने वाले लव-हेट लेटर्स के चलते. तब गर्मी की सांझें भी लंबी और सुहानी हुआ करतीं. शाम को पार्क में खेले जाने वाले खेल थे. दिन भर लू भरी दुपहरी में खेले जाने वाले व्यापारी और चेस-लूडो जैसे खेलों की वजह से और दिन ढलने से पहले तक खेले जाने वाली क्रिकेट से.
उस दौर में हम सब-कुछ पूरा करते. खेल भी, मोहब्बत भी और अपना टास्क भी. किसी भी काम को करने की एक धुन हुआ करती. गर्मियां खत्म होते-होते बारिश आ जाती. हम बारिश में कभी अपनी कागजी नाव दौड़ाया करते तो कभी गांव के सारे ताल-तलैयों का जायजा ले आया करते. स्कूल खुलने और दोस्तों से मिलने के लिए रोज कैलेंडर देखा करते. अपनी प्रियतमा को देख कर कुछ ऐसे शर्माते जैसे शरीर के किसी अंग से छू जाने पर छुईमुई का पौधा अपने सिकुड़ जाता है. बड़े और समझदार होने के क्रम में हम इन सहज-सुलभ चीजों से अपने आप दूर होते चले गए. आज भी बहुत याद आते हैं वो दिन...