अमेरिकी इतिहासकार लॉरेल थैचर उलरिच ने एक बार लिखा था कि सभ्य और अच्छे बर्ताव वाली महिलाएं आम तौर पर इतिहास नहीं बनातीं. राजनीतिक मानकों के हिसाब से सुनंदा पुष्कर भी बहुत शालीन महिलाओं में से नहीं थीं.
नेताओं की पत्नियां देखे जाने के लिए होती हैं, सुने जाने के लिए नहीं. और जब वे अलविदा कहती हैं तो भी बेहद शांति से, एक चुप्पी ओढ़कर. जैसा पायल नाथ ने उमर अब्दुल्ला से तलाक लेते हुए किया था.
अलग होने की अफवाहों के बीच एक और जाना-माना राजनीतिक कपल, हमेशा के लिए अलग हो गया. नेताओं की बीवियां सोशल मीडिया पर जाने के लिए नहीं होतीं, न ही ट्वीट्स के अंबार और अखबारी इंटरव्यूज की तीखी तपिश के लिए.
लेकिन सुनंदा चुप रहने वाली महिला नहीं थीं. वह लाउड थीं, एक्टिव थीं और सार्वजनिक मौकों पर भी नाच और गा सकती थीं. वह दुबई से आई थीं इसलिए एक किस्म से बाहरी भी थीं. दुबई, ढेर सारे मेकओवर्स और संदिग्ध बदलावों वाला शहर, जो दिल्ली के नेताओं की बीवियों को खास पसंद नहीं आया.
सुनंदा को लोगों के लिए खाना बनाना पसंद था, मनोरंजन पसंद था और अजनबियों से अपने अंतरंग राज साझा करने की आदत थी. एक ऐसे शहर में जहां राजनेता अब भी सफेद नैपकिन से ढंके गिलासों में व्हिस्की पीते हैं और इस दौरान उनकी बीवियां डायमंड्स पर चर्चा करने के लिए छोड़ दी जाती हैं, सुनंदा एक अपवाद थीं. वह 'पॉलिटिकली इनकरेक्ट' थीं और अपने विचार रखने में हिचकती नहीं थीं, भले ही वह आर्टिकल 370 का मुद्दा हो या लैंगिक भेदभाव का. गलत तरीके से छूने पर वह सबके सामने किसी शख्स को थप्पड़ मार सकती थीं, बिल्कुल वैसे ही, जैसे नरेंद्र मोदी को उनके '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड' वाले कमेंट के लिए टीवी पर सरेआम लताड़ सकती थीं.
विनम्र नमस्ते की अपेक्षा करने वाले शहर में आप छूकर सुनंदा का अभिवादन कर सकते थे. उनकी दो शादियां नाकाम हो चुकी थीं. जब जरूरत होती तो आदतन वह अपने दिमाग से ही संचालित होती थीं. कुल मिलाकर वह एक राजनीतिक टाइम बम थीं.
सुनंदा के मामले से आप यह भी समझ सकते हैं कि राजनीति कितनी 'सेक्सिस्ट' है. कोई महिला जब तक अपने दम पर नेता नहीं बनती, उसे महज एक वस्तु माना जाता है. सिर्फ भारत की बात नहीं है. यह दुनिया भर की राजनीति का अलिखित नियम है. पुरुष गलती करता है तब भी लोग दूसरी तरफ ही देखते हैं. भले ही वह हुमा एबेडिन हों जो अश्लील लिंक शेयर करने वाले अपने पति एंथनी वीनर के साथ खड़ी रहीं या उनकी बॉस हिलेरी क्लिंटन हों. महिलाओं को हर बात दांत पीसना और आंसू पीकर मुस्कुराना होता है.
कर्टिस सिटेनफेल्ड ने एक किताब लिखी है 'अमेरिकन वाइफ'. जॉर्ज डब्ल्यु बुश की बीवी लॉरा बुश पर आधारित है. नेताओं की बीवियों से क्या अपेक्षाएं होती हैं, जानना हो तो यह किताब पढ़िए. किताब की किरदार एलिस लिंडग्रेन एक बुद्धिमान, विचारशील और थोड़ा रिजर्व रहने वाली महिला है. उसे किताबें, लाइब्रेरी पसंद है, पारंपरिक मिडल क्लास ईसाई परवरिश की झलक उसके व्यक्तित्व में है. उसके लिए अच्छे संस्कारों का मतलब है, सामने वाले के साथ एडजस्ट करना.
लेकिन सुनंदा एडजस्ट करने में यकीन नहीं रखती थीं. वह अपने साथियों के साथ शाम ढलने तक डांस करने वाली औरत थीं. अपनी जुल्फों, शानदार स्किन और स्नेह के सार्वजनिक प्रदर्शन से उठी तमाम फुसफुसाहटों और तानों की अनदेखी करते हुए.
दिल्ली वह शहर है जो वर्गीकरण को लेकर बहुत गंभीर है. कौन, किसके साथ, कहां देखा जा रहा है, इस पर यह शहर पैनी नजर रखता है. इस माहौल में सुनंदा एक खुशबूदार हवा का ताजा झोंका थीं. सब कुछ बर्दाश्त करना राजधानी के लिए बड़ा मुश्किल था.
ठीक सुनंदा की तरह.