सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट और फरीदाबाद की निचली अदालत के फैसलों को पलटते हुए नाबालिग लड़की के साथ रेप केस में दो अभियुक्त भाइयों को बरी कर दिया. लेकिन निर्दोष होते हुए भी जेल में कई साल गुजारने वाले इन दो भाइयों की इस सजा के लिए जिम्मेदार कौन है?
दरअसल, साल 2001 का ये मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब जाकर बात खुली कि आरोप तो साबित ही नहीं हुए, यानी आरोप सरासर फर्जी हैं. बता दें कि दो चाचा ने नाबालिग भतीजी को इलाके के ही एक लड़के को प्रेम पत्र लिखने और मिलने से मना किया तो लड़की ने रेप का आरोप लगा दिया. लेकिन निचली अदालत और हाईकोर्ट ने दस्तावेजों के उलट पीड़ित के बयान को आधार माना और दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इन फैसलों को पलटते हुए जय सिंह और शाम सिंह को रेप के आरोपों से बरी कर दिया.
फर्जी निकला केस!
फरीदाबाद जिले में एक नाबालिग लड़की पास के ही एक लड़के से प्रेम करती थी, और उसे प्रेम पत्र भी लिखे थे. ये पत्र उसके चाचाओं के हाथ लग गए और उन्होंने लड़की को समझाया और जब वो नहीं मानी तो थप्पड़ जड़ दिए. इससे तिलमिलाई लड़की ने अब से ठीक 17 साल पहले यानी 22 अगस्त 2001 को दोनों चाचाओं जय सिंह और शाम सिंह पर रेप का आरोप लगाया.
पंचायत में दोनों ने लड़की को थप्पड़ मारने का बयान देते हुए हाथ उठाने की बात स्वीकार कर ली जिसके लिए उन्होंने लिखित में माफी भी मांगी. लेकिन पंचायत से नाखुश लड़की ने पुलिस को रेप की कहानी सुनाई और चाचाओं को जेल भिजवा दिया. हालांकि मेडिकल जांच में ना तो रेप की पुष्टि हुई ना ही कपड़ों पर या कहीं भी कोई ऐसा निशान या सबूत मिला जिससे रेप की तस्दीक हो सके.
ट्रायल कोर्ट ने सुनाई सजा
जिसके बाद मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने शुरुआती जांच में आरोपों और बचाव पक्ष की ओर से पेश सबूतों को बिल्कुल अलग-अलग माना. यानी आरोपों की पुष्टि नहीं होने पर आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन फिर से ट्रायल की जरूरत बताई.
ट्रायल कोर्ट ने फिर से मामला सुना और दोनों आरोपी भाइयों को दोषी मानते हुए जून 2011 में उम्रकैद की सजा सुनाई. फैसले के खिलाफ आरोपी भाइयों ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की तो वहां भी निराशा हाथ लगी. हाईकोर्ट ने निचली अदालत की सजा बरकरार रखी.
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई. लेकिन तब तक जय सिंह को जेल में 10 साल और शाम सिंह को 7 साल हो चुके थे. सुप्रीम कोर्ट का फैसला लिखने वाले जस्टिस एम शांतानागोदार ने साफ लिखा है कि अभियोजन की सारी दलीलें और सबूत फिसड्डी और कृत्रिम है क्योंकि ना तो मेडिकल रिपोर्ट से कोई पुष्टि हुई और ना ही बयानों में मेल दिखा. ऐसे में बेंच इस नतीजे पर पहुंची कि अभियोजन ने आरोपियों को जबरन फंसाने के लिए मनगढ़ंत और संदेह के आधार पर कहानियां गढ़ीं.
उम्रकैद की सजा जिम्मेदार कौन ?
लेकिन हैरत की बात है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि आखिर इनके दस सालों की कैद के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या वो `पीड़ित' लड़की, जो अपने आरोप साबित नहीं कर पाई? या फिर अदालतों में जांच अधिकारी, जो सही रिपोर्ट पेश नहीं कर पाएं?
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एसपी सिंह का कहना है कि कोर्ट फैसला सुनाता है, लेकिन कोई जरूरी नहीं कि कोर्ट गलत फैसलों के लिए किसी को दोषी ठहराए. यह बात कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है कि वो जिम्मेदार के लिए कोई आदेश देती है या नहीं.