सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य करार देने वाले अपने फैसले के खिलाफ समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से दायर सुधारात्मक याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई के लिए राजी हो गया है.
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वे दस्तावेजों का निरीक्षण करेंगे और याचिका पर गौर करेंगे. इस पीठ के समक्ष यह मामला विभिन्न पक्षों की ओर से वरिष्ठ वकीलों ने उठाया था. सुधारात्मक याचिका अदालत में किसी मामले से जुड़ी चिंताओं पर दोबारा विचार का अंतिम न्यायिक रास्ता है और सामान्यत: इस पर न्यायाधीश बिना किसी पक्ष को बहस की अनुमति दिए अपने कक्ष में सुनवाई करते हैं.
याचिकाकर्ताओं में नाज फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन भी शामिल है, जो लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय की ओर से कानूनी लड़ाई लड़ रहा है. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि पिछले साल 11 दिसंबर को दिए गए फैसले में गलती है और वह पुराने कानून पर आधारित है.
वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक देसाई ने पीठ को बताया कि फैसले को 27 मार्च 2012 को सुरक्षित रख लिया गया था लेकिन फैसला लगभग 21 महीने बाद सुनाया गया. इस दौरान कानून में संशोधन समेत बहुत से बदलाव हुए और फैसला देते समय पीठ ने इन पर ध्यान नहीं दिया.
हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी, आनंद ग्रोवर जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ अन्य वकीलों ने भी देसाई का समर्थन किया और एक खुली अदालत में सुनवाई की अपील की.