जस्टिस मार्कंडेय काटजू की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सवाल किया कि किसी के बयान पर असहमति जताने से क्या उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है? कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि वो गुरुवार को इस मामले में अपनी राय दें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब संसद में कोई प्रस्ताव पास होता है तो वो सांसदों की सामूहिक आवाज होती है.
कोर्ट ने पूछे सवाल
कोर्ट ने पूछा कि 'क्या कोर्ट इस सामूहिक आवाज पर कोई फैसला सुना सकता है. कया निंदा प्रस्ताव पास होने से ही किसी मूल अधिकार का हनन हुआ है?' सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस मारकंडेय काटजू की याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा कि 'सांसदों को छोड़िए, अगर कोई नागरिक, जिसे कोई संरक्षण नहीं है, वो आपके किसी बयान पर असहमति जताता है तो क्या इसके बदले आप उस नागरिक पर कार्रवाई कर सकते हैं? क्या असहमति जताने से ही कोई कार्रवाई हो सकती है?'
गांधी-बोस पर काटजू ने की थी टिप्पणी
जस्टिस काटजू ने 10 मार्च 2015 को अपने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा था, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट और सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट कहा था. लोकसभा और राज्यसभा में 11 और 12 मार्च को काटजू के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया था.
जस्टिस काटजू की दलील
इस निंदा प्रस्ताव को निरस्त करवाने के लिए काटजू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. पूर्व जज ने अपने फेसबुक पोस्ट में आरोप लगाया था कि संसद के दोनों सदनों ने उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बगैर ही 'गांधी को ब्रिटिश एजेन्ट और सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेन्ट' कहने संबंधी उनके बयान के लिए उनकी निन्दा की.
भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस काटजू ने अपनी याचिका के साथ फेसबुक पोस्ट भी लगाया है. काटजू ने उनके खिलाफ पारित प्रस्ताव रद्द करने का अनुरोध किया है.