अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया. कोर्ट ने रहा कि लोकतंत्र की हत्या को सुप्रीम कोर्ट एक मूकदर्शक की तरह नहीं देख सकता.
26 जनवरी को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी. कांग्रेस ने बीजेपी पर राजनीतिक साजिश रचने और लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाया था.
बीजेपी नेताओं के बयान पर कोर्ट की टिप्पणी
गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी बीजेपी नेताओं के उस बयान के बाद की है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन राज्यपाल जेपी राजखोवा की संस्तुति पर लगाया गया है और उस पर सवाल उठाना असंवैधानिक है.
कोर्ट ने मानी थी अपनी गलती
बीते सप्ताह मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में राज्यपाल को नोटिस भेजे जाने की गलती स्वीकार की थी और कहा था, ‘यह (नोटिस जारी करना) हमारी गलती है.’ इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कानूनी स्थिति का जिक्र करते हुए शीर्ष अदालत के 2006 के फैसले का हवाला दिया जिसमें व्यवस्था दी गई थी कि राज्यपालों को कानूनी कार्यवाही में शामिल होने के लिए नहीं कहा जा सकता है.
बीजेपी और केंद्र सरकार का कहना है कि कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने में नाकाम रही है, जिसकी वजह से राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी हो गया था.