सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने फिर बड़ी तादाद में सुनवाई के लिए लिस्टेड मामलों को लेकर पर नाखुशी जताई है. कोर्ट ने कहा कि 31 जज हैं और उनके सामने 40 हजार मामले लंबित हैं.
उन्होंने कहा कि मामलों को दर्ज करने को लेकर व्यवस्था बना दी गई है, इसके बावजूद बिना अर्जेंसी के मेंशन होने वाले मामलों की संख्या में कमी नहीं दिख रही. हाइकोर्ट्स में भी लंबित मामलों का बोझ है.
सुप्रीम कोर्ट मामलों को तेजी से निपटाने की कोशिश जुटी हुई है. मामलों को जल्दी निपटान के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा था जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की संख्यां बढ़ाने का अनुरोध किया गया था. साथ ही उन्होंने जजों के रिटारयमेंट की उम्र को भी बढ़ाने की बात कही थी. ताकि लंबित मामलों को निपटाया जा सके.
बता दें कि 1988 में सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या 18 से 26 की गई थी. जिसे 2009 में बढ़ाकर 31 कर दिया गया. हालांकि, तब भी सीजेआई ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या को बढ़ाकर 31 से 37 की जानी चाहिए. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2007 में सुप्रीम कोर्ट में 41,078 मामले लंबित मामले थे, जिनमें तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल लंबित मामलों के 87.54 फीसदी केस निचली अदालतों में लंबित हैं. सरकार कहती है कि 2018 में जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में 74.7 फीसदी सिविल और 86.5 फीसदी आपराधिक मामलों का निबटारा तीन साल के भीतर हुआ.
2017 में 2.87 करोड़ मुकदमे लंबित थे. जनवरी से दिसंबर 2018 के बीच 1.5 करोड़ नए मुकदमे आ गए. 2018 में 1.33 मामले निपटाए गए लेकिन लंबित मुकदमों की संख्या 3.04 करोड़ हो गई.
अक्तूबर 2018 तक सुप्रीम कोर्ट में 56 हजार से ज्यादा मामले लंबित थे जबकि विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या जून 2018 तक 44 लाख से ज्यादा थी. दिसंबर 2018 तक निचली अदालतों में जजों की स्वीकृत संख्या 22750 के मुकाबले कुल कार्यरत जज 17891 (79 फीसदी) ही थे.
2018 के सभी मामले निपटाने के लिए 2279 अतिरिक्त न्यायाधीशों की जरूरत थी. अगले पांच सालों में सभी मुकदमों के निपटान के लिए 8 हजार से ज्यादा न्यायाधीशों की जरूरत होगी. हाईकोर्ट का एक जज 2348 मुकदमें साल भर में निपटाता है.