राम मंदिर बना वजह?
पार्टी को लगातार ये डर सता रहा था कि ये मामला राम मंदिर के पक्ष में फैसला आने को रोकने वाला ना साबित हो. इसीलिए कई महीनों की जद्दोजहद के बावजूद महाभियोग का मसला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा.
कांग्रेस के भीतर अहमद पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मल्लिकार्जुन खड़गे, वीरप्पा मोइली जैसे तमाम नेता रहे जो तकनीकी तौर पर तो इसके पक्ष में थे, लेकिन राजनैतिक परिणामों को लेकर विरोध करते रहे. चिदंबरम और उनके परिवार के खिलाफ तमाम केस चल रहे हैं. इसीलिए तकनीकी तौर पर सहमत चिदंबरम को इससे दूर रखा गया.
मामला ठंडे बस्ते में जा रहा था. टीएमसी और डीएमके जैसे विपक्षियों ने साथ देने से मना कर दिया था. कांग्रेस पार्टी के भीतर भी दो-राय थीं. हालांकि, सबके दस्तखत कराने की बजाय पहली प्राथमिकता जरूरी 50 सांसदों का आंकड़ा पार करने की थी. शोर शराबा ना हो इसीलिए सब कुछ गुपचुप तरीके से किया गया. लेकिन आखिर में सब फुस्स हो गया. यहां तक कि दस्तखत करने वाले सांसद पूछने लगे कि दस्तखत क्यों कराए थे, जब महाभियोग लाना नहीं था.
सब कुछ उधेड़बुन में था. तभी जज लोया के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. फैसला जो आया सो आया, लेकिन 'पॉलिटिकल वेन्डेटा' की टिपण्णी ने विपक्षियों और कांग्रेस को मौका दे दिया. सबको लगा कि अब राम मंदिर का मसला नहीं उठेगा. इसी मौके का फायदा उठाकर महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया.
हालांकि, जज के फैसले के खिलाफ महाभियोग नहीं लाया जा सकता, इसीलिए आधिकारिक तौर पर विपक्षी इससे इंकार करते रहे. लेकिन सियासत का तकाजा सब कुछ बयां कर रहा है.