अयोध्या राम जन्मभूमि मामले से जुड़े एक अहम केस में सुप्रीम कोर्ट कल दोपहर दो बजे अपना फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट इस बात पर फैसला देगा कि मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का आतंरिक हिस्सा है या नहीं. कोर्ट इस दौरान तय करेगा कि कोर्ट तय करेगा कि 1994 के इस्माइल फारूकी के मुकदमे में दिए गए फैसले पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है या नहीं. अगर ज़रूरत है तो कितने जजों की बेंच सुने.
1994 के फैसले पर फिर करेगा विचार
1994 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है, इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, ताकि हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें. अब कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि क्या 1994 वाले फैसले की समीक्षा की ज़रूरत है या नहीं. कोर्ट ने 20 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था. बता दें कि टाइटल सूट से पहले ये फैसला काफी बड़ा हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट की एडवांस सूची के मुताबिक ये फैसला लिस्ट में शामिल है.
2010 में आया था बड़ा फैसला
आपको बता दें कि 1994 के फैसले में पांच जजों की पीठ ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई रामलला को दिया था.
पक्षकार भी बोले- कोर्ट जो भी फैसला दे वो मंजूर
अयोध्या के मंदिर-मस्जिद मुद्दे के पक्षकार इस पर अभी तक गोलमोल जवाब ही देते आए हैं. बाबरी मस्जिद के पक्षकार यह तो मानते हैं कि नमाज मस्जिद में पढ़ी जाए, यह जरूरी नहीं. नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है. लेकिन इसी के साथ वह यह कहकर असमंजस की स्थिति भी पैदा कर देते हैं कि नमाज अगर मस्जिद में पढ़ी जाए तो अधिक सबाब मिलता है. वह यह साफ करते हैं कि अब इस पर राजनीति बहुत हो चुकी है. अब कोर्ट फैसला सुनाए, इस पार या उस पार, जो भी कोर्ट फैसला देगी वह स्वीकार होगा.
इस्लाम का अंग- मुद्दई इकबाल अंसारी
बाबरी मस्जिद में मुद्दई इकबाल अंसारी का कहना है कि 27 तारीख को कोर्ट जो भी फैसला करे हमें मंजूर है. लेकिन मस्जिद में मूर्ति रखी गई, मस्जिद तोड़ी गई, फैसला कोर्ट को सबूतों के बुनियाद पर करना है. मस्जिद इस्लाम का एक अंग है. मस्जिद तोड़ दी गई, तब भी नमाज जमीन पर बैठकर की जाएगी. वह जगह मस्जिद कहलाएगी. मस्जिद की जमीन ना किसी को दी जा सकती है और ना बेची जा सकती है. वह हमेशा मस्जिद ही कही जाएगी. हम कोर्ट पर विश्वास करते हैं. कानून पर विश्वास करते हैं. कोर्ट फैसला करे. इधर करे या उधर करे, क्योंकि इसके पहले इस पर इतनी राजनीति की जा चुकी है.
मस्जिद में नमाज का अधिक सबाब- हाजी महबूब
बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब कहते हैं कि जिस तरह से मंदिर में पूजा होती है, उसी तरह मस्जिद में नमाज होती है. यह सही है कि हम नमाज कहीं भी अदा कर सकते हैं, लेकिन मस्जिद में नमाज अदा करने से अधिक सबाब मिलता है. इसलिए मस्जिद में नमाज़ अदा करना अधिक जायज है.
कोर्ट दे चुका है फैसला, नमाज मस्जिद का अंग नहीं- सत्येंद्र दास
रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास कहते हैं कि इसके पहले उसी कोर्ट में फैसला हो चुका है कि नमाज मस्जिद का अंग नहीं होता. नमाज पढ़ने वाले नमाजी कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं. यह कोई जरूरी नहीं है कि वह मस्जिद में ही पढ़े और कहीं ना पढ़े. मस्जिद में मजार में सड़कों पर हर जगह नमाज होती है. इसको पूरी तरह समझकर कहा गया था कि नमाज मस्जिद का अंग नहीं है. अब एक बार जो फैसला हो चुका है, उस पर दोबारा फैसला करने की जरूरत क्यों हुई, इसको तो 27 तारीख का फैसला आने के बाद ही समझा जाएगा. लेकिन जो यह फैसला आएगा वह बता देगा कि नमाज मस्जिद का अंग नहीं है.