सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फायदे की खातिर सरकार और सरकारी अधिकारियों द्वारा अखबारों और टीवी में विज्ञापन देकर सार्वजनिक फंड का दुरुपयोग रोकने के मकसद से गाइडलाइन बनाने के लिए एक समिति का गठन किया है. समिति इस मुद्दे पर विचार करेगी और अपनी सिफारिशें देगी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में संदेश जनता तक पहुंचाने के लिए दिए जाने वाले विज्ञापनों और राजनीति से प्रेरित विज्ञापनों में फर्क किए जाने की जरूरत है.
मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि सरकारी खजाने की कीमत पर दिए जाने वाले ऐसे विज्ञापनों के नियमन के लिए मौलिक दिशानिर्देशों की जरूरत है और इसके लिए चार सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया है.
राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के पूर्व निदेशक एन आर माधव मेनन, पूर्व लोकसभा सचिव टी के विश्वनाथन, वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव इसके सदस्य होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने समिति को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट जमा करने को कहा है.
जनहित याचिका पर आदेश
अदालत ने गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की जनहित याचिकाओं पर यह आदेश दिया है. इन एनजीओ ने दिशानिर्देश बनाने की अपील की थी.
याचिका में दिशानिर्देश जारी करने की अपील की गई है ताकि सत्तारूढ दलों को आधिकारिक विज्ञापनों में अपने नेताओं को दिखाकर राजनीतिक लाभ हासिल करने से रोका जा सके. इससे पहले कॉमन कॉज के वकील ने कहा था कि सार्वजनिक राजकोष की कीमत पर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सत्तारूढ दल से जुड़े राजनेताओं का महिमामंडन संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.
सीपीआईएल के वकील ने अदालत को बताया था कि सरकार के कार्यक्रमों के बारे में लोगों को जानकारी देने और इस संबंध में विज्ञापन देने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन जब ऐसे विज्ञापनों का लक्ष्य राजनीतिक लाभ प्राप्त करना हो जाता है तो ये अनियंत्रित एवं गलत इरादे से प्रेरित हो जाते हैं.