सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तय किया है कि तलाक दिए जाने के कानून की समीक्षा की जाएगी. सर्वोच्च अदालत यह पता लगाएगी कि उन टूट चुकी शादियों में 18 महीने तक अलग रहने की अनिवार्य अवधि के बिना भी तलाक प्रदान किया जा सकता है या नहीं, जिनमें दोबारा समझौते की गुंजाइश बाकी नहीं रहती.
सालों से सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा है और तलाक भी प्रदान कर चुका है. जबकि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आपसी सहमति से भी तलाक लेने के लिए पहले पति-पत्नी को कम से कम 18 महीने तक अलग रहने की शर्त पूरी करनी पड़ती है.
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास यह 'पूरा न्याय करने के लिए' कोई भी आदेश जारी करने का अधिकार है. अपने इसी अधिकार का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट अलग होने की एक साल की न्यायिक अवधि के बाद 6 महीने का वेटिंग पीरियड अलग करके कुछ मामलों में तलाक प्रदान कर चुका है.
हालांकि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को यह बता चुकी है कि उसका तलाक के कानून में तलाक देने के लिए एक शर्त के तौर पर उन टूट चुकी शादियों को शामिल करने का कोई इरादा नहीं है, जिनमें दोबारा समझौते की गुंजाइश नहीं होती. अब जस्टिस रंजन गोगोई और एनवी रामना की बेंच ने इस कानून की समीक्षा करके यह पता लगाने का फैसला किया है कि जज विधायिका की इच्छा से ऊपर उठकर फैसला कर सकते हैं या नहीं.