सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं पर चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने के मामले में सुनवाई करते हुए इसे काफी गंभीर मामला मानते हुए कहा कि हमारी अपनी कानूनी सीमा है और यह संसद का काम है. हालांकि उसने कहा कि गंभीर अपराधों के मामलों को निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान कई गंभीर टिप्पणियां कीं. सुनवाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव किए बिना दोषी करार होने से पहले किसी को भी चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता. कानून में बदलाव करना संसद की जिम्मेदारी है. गंभीर अपराधों के मामलों में फास्ट ट्रैक के जरिये मामले का जल्द निपटारा करने पर विचार किया जा सकता है.
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित जीने के अधिकार में यह भी साफ-साफ लिखा है कि सजा सिर्फ अपराध साबित होने पर ही दी जा सकती है ना कि आरोप तय होने पर. केंद्र सरकार ने कहा कि इस विषय पर संसद कार्यवाही कर सकती है न कि कोर्ट.
वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि अब वक्त आ गया है कि संसद उन हालात की समीक्षा करे जिसकी वजह से ऐसे सवाल उठ रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी एक अपनी लक्ष्मण रेखा है, हम कानून की व्याख्या करते हैं न कि कानून बनाते हैं. कानून तो संसद बनाती है. आप कह रहे हैं कि हम कानून बनाए यह कैसे हो पाएगा? हमारा भी एक दायरा है.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में गुरुवार से उस याचिका पर सुनवाई चल रही है जिसमें 5 साल या इससे ज़्यादा की सजा वाले गंभीर अपराधों में अगर कोई व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होता है तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए.
दरअसल, मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं. याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसदी नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध के मामले में कोर्ट आरोप तय कर चुका है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि कई विशेषज्ञ समितियां जिसमें गोस्वामी समिति, वोहरा समिति, कृष्णामचारी समिति, इंद्रजीत गुप्ता समिति, जस्टिस जीवनरेड्डी कमीशन, जस्टिस वेंकेटचलैया कमीशन, चुनाव आयोग और विधि आयोग राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जता चुके हैं, लेकिन सरकार ने आज तक उनकी सिफारिशें लागू नहीं कीं.