दूध में मिलावट की रोकथाम के लिए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि दूध में मिलावट की हालत चिंताजनक हैं और ऐसे में जरूरी है कि कानून में कड़े प्रावधान किये जाएं.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा है कि भारत सरकार फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट 2006 में जरूरी बदलाव करे. केंद्र और राज्य सरकारों की लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं-
- सुप्रीम कोर्ट ने मिलावट को गंभीर मुद्दा बताते हुए निर्देश दिए हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें 'फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट 2006' को लागू करने के लिए असरदार कदम उठाए.
- राज्य सरकारें डेयरी मालिक, डेयरी आपरेटरों और विक्रेताओं को सूचना दें कि अगर दूध में कीटनाशक और कास्टिक सोडा जैसे केमिकल पाए गए तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
- राज्य की फूड सेफ्टी अथॉरिटी अपने क्षेत्र में मिलावट के लिए हाई रिस्क इलाकों का पता करें और त्योहारों की मौके पर ऐसी जगहों से ज्यादा से ज्यादा दूध के सैंपल लिए जाएं.
- राज्य की फूड सेफ्टी अथॉरिटी यह सुनिश्चित करें कि इलाके में पर्याप्त संख्या में मान्यता प्राप्त लैब हों. राज्य और जिला स्तर पर लैब पूरी तरह संसाधनों से लैस हों और टेक्निकल लोग और टेस्ट की सुविधा हो. राज्य की फूड सेफ्टी अथॉरिटी और जिला अथॉरिटी दूध और दूध से बने उत्पादों के टेस्ट के लिए कारगर उपाय करें और औचक निरीक्षण के लिए मोबाइल टेस्ट वैन भी मौजूद हों.
- राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर दूध में मिलावट रोकने के लिए वक्त-वक्त पर स्नैप शार्ट सर्वे किए जाएं. दूध में मिलावट को रोकने के लिए महाराष्ट्र की तरह चीफ सेक्रेट्री या डेयरी विकास सेक्रेट्री की अगुवाई में और जिला स्तर पर जिलाधिकारी की अगुवाई में कमेटी का गठन किया जाए.
- राज्य में मिलावट संबंधी जानकारी और शिकायत के लिए वेबसाइट हो और टोल-फ्री नंबर भी बनाया जाए. साथ ही लोगों को अफसरों के नाम और नंबर भी मुहैया कराए जाएं. राज्य मिलावट को लेकर जागरुकता अभियान चलाएं और स्कूलों में भी वर्कशाप कर मिलावट का पता लगाने के तरीके बताएं. केंद्र और राज्य खाद्य विभाग में भ्रष्टाचार और दूसरे गलत तरीकों का पता लगाने के लिए व्यवस्था की जाए.
2013 और 2014 में आया था अंतरिम आदेश
गौरतलब है कि इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर 2013 और 10 दिसंबर 2014 को इसी मामले की सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश जारी किए थे. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलावटखोरी के लिए कानून को सख्त बनाने के लिए कहा था. उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश ने धारा 272 में बदलाव कर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया था.
स्वामी अच्युतानंद तीर्थ की तरफ से ये याचिका डाली गयी थी, जिसमें बाद में कुछ और लोग भी पक्षकार बन गए थे. याचिका में मांग की गई थी कि मिलावटखोरी को रोकने के लिए कानून में बदलाव किए जाएं और सरकारों को जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए जाएं. अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए ये आदेश दिया है.