ट्रिपल तलाक और मुस्लिम पर्सनल ला पर देश में चल रही बहस के बीच एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आई. बिहार की रहने वाली एक महिला इशरत जहां ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगायी की उसके पति ने 2015 में दुबई से फ़ोन पर उसको तलाक़ दे दिया.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने केंद्र सरकार और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को नोटिस जारी कर इस मामले को भी पहले से ही कोर्ट में चल रही 4 याचिकाओं के साथ सुनवाई के लिए भेज दिया .
इसके लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण की अर्जी लगाएं
याचिकाकर्ता की ये भी मांग थी की उसके 4 बच्चों को पति के परिवार से लेकर उसे दिया जाए और उसके दहेज की रकम उसे वापिस दिलवाया जाए. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा की ये राहत लेने के लिए आप या तो पुलिस को अपनी अर्जी दें या दूसरी अर्जी लगाएं. मुख्य न्यायधीश टी एस ठाकुर ने कहा, 'इस याचिका के जरिए आप ये मांग नहीं कर सकते, आप इसके लिए हेबस कार्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण की अर्जी लगाएं'.
इस याचिका से पहले शायरा बानो, नूरजहां नियाज़, आफरीन रहमान नाम की पीड़ित महिलाएं सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा कर ट्रिपल तलाक को चुनौती दे चुकी हैं. इनके अलावा फरहा फैज़ नाम की एक महिला ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ट्रिपल तलाक़ और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को चुनौती दी है. इन सभी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही केंद्र सरकार और सम्बंधित पक्षों को नोटिस जारी कर चुका है . मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने भी खुद को पक्षकार बनाया है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिल आर दवे और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने एक अन्य मामले में दिए फैसले में कहा था की मुसलमानों में ट्रिपल तलाक़ जैसे कई मुद्दे हैं जिससे महिलाओं के साथ अन्याय होता इसलिए मुख्य न्यायधीश इस मामल को जनहित याचिका में तब्दील कर एक विशेष बेंच बना कर इसमें दखल दें. इसके बाद मुख्य न्यायधीश की ही अध्यक्षता वाली तीन जजों की एक विशेष बेंच इन मामलों की सुनवाई कर रही है.