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सुप्रीम कोर्ट ने अडानी पावर की याचिका पर हिमाचल प्रदेश सरकार को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने अडानी पावर की याचिका पर हिमाचल प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है. कंपनी ने किन्नौर जिले में 969 मेगावाट की जंगी थोपन विद्युत प्रोजेक्ट के संबंध में हिमाचल सरकार से 280 करोड़ रुपये वापस करने की मांग की है.

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सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)

अडानी पावर की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है. कंपनी ने अपनी याचिका में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें जल विद्युत परियोजना से संबंधित 280 करोड़ रुपये का प्रीमियम वापस करने के एकल पीठ के फैसले को पलट दिया था. अडानी पावर लिमिटेड ने किन्नौर जिले में 969 मेगावाट की जंगी थोपन विद्युत प्रोजेक्ट के संबंध में हिमाचल सरकार से 280 करोड़ रुपये की वापसी की मांग की हैं.

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18 जुलाई को जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा दायर चुनौती के बाद अडानी पावर के रिफंड दावे को खारिज कर दिया था. ये विवाद साल 2005 में उस वक्त शुरू हुआ था, जब हिमाचल प्रदेश ने 480 मेगावाट की दो जलविद्युत परियोजनाओं जंगी थोपन और थोपन पोवारी के लिए वैश्विक बोलियां आमंत्रित कीं. ब्रेकल कॉर्पोरेशन एनवी सबसे बड़ी बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी.

ब्रेकेल द्वारा अग्रिम प्रीमियम जमा करने में विफल रहने के बाद रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने नीदरलैंड की कंपनी की बोली के बराबर की राशि देने की पेशकश की, जिसके कारण एक लंबी कानूनी लड़ाई चली.

राज्य सरकार ने ब्रेकल को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसके बाद कंपनी की सहायक कंपनी को 173.43 करोड़ रुपए जमा कराने पड़े. रिलायंस इंफ्रा ने इस भुगतान का विरोध किया और तर्क दिया कि ब्रेकल समय सीमा से चूक गई है. पर बाद में पता चला कि ब्रेकल कॉर्पोरेशन की सहायक कंपनी ब्रेकल किन्नौर प्राइवेट लिमिटेड को जलविद्युत परियोजनाओं के लिए अग्रिम प्रीमियम को कवर करने के लिए अडानी समूह से 173.43 करोड़ रुपये मिले थे.

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प्रोजेक्ट का आवंटन किया रद्द

वहीं, 7 जुलाई 2008 को हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल ने गलत बयानी के लिए ब्रेकल को एक और कारण बताओ नोटिस जारी किया और राज्य को हुए नुकसान के कारण अग्रिम राशि जब्त करने की मांग की. इसके परिणामस्वरूप ब्रेकल को परियोजना आवंटन रद्द कर दिया गया और अग्रिम प्रीमियम जब्त कर लिया.

4 सितम्बर, 2015 को मंत्रिस्तरीय बैठक में राज्य विधि विभाग ने सलाह दी कि राज्य एक ही परियोजना के लिए दो अलग-अलग पक्षों से अग्रिम प्रीमियम राशि को अपने पास नहीं रख सकता तथा सुझाव दिया कि अडानी पावर लिमिटेड को धन वापसी आवश्यक है.

अडानी पावर जो शुरू में बोली प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थी, ने 2019 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर करके ब्रेकल के पास जमा किए गए अग्रिम प्रीमियम को वापस लेने की मांग की थी. कंपनी ने किन्नौर में दो पनबिजली परियोजनाओं के लिए ब्रेकल कॉर्प की ओर से किए गए भुगतान का हवाला देते हुए 280.06 करोड़ रुपये के साथ ब्याज की वापसी की भी मांग की.

एकल पीठ ने अडानी के पक्ष में सुनाया फैसला

इस पर अडानी पावर ने तर्क दिया कि ब्रेकेल की गलत बयानी और प्रक्रियात्मक उल्लंघनों को संबोधित करने में राज्य की विफलता ने उनके मुआवजे के दावे को उचित ठहराया. इसने अनुबंध अधिनियम की धारा 70 का हवाला दिया जो गैर-अनुग्रहकारी कार्यों के लिए मुआवजे से संबंधित है और धारा 65 जो समझौतों के शून्य हो जाने पर प्रतिपूर्ति से संबंधित है.

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वहीं, अप्रैल 2022 में उच्च न्यायालय के एकल पीठ के आदेश ने शुरू में अडानी पावर के पक्ष में फैसला सुनाया और हिमाचल प्रदेश सरकार को राशि वापस करने का निर्देश दिया.

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