सीबीआई के स्पेशल जज ब्रजमोहन लोया की मौत के मामले की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने जनहित याचिका को जहां प्रायोजित बताया तो वहीं याचिकाकर्ता की ओर से इसमें एसआईटी जांच की मांग की गई.
जस्टिस लोया की मौत पर जांच के लिए दायर की गई जनहित याचिका को महाराष्ट्र सरकार ने प्रायोजित (मोटिवेटेड) बताया. महाराष्ट्र सरकार की ओर पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील मुकल रोहतगी ने देश की शीर्ष अदालत में पेश दलीलों में कहा कि जब चार जजों ने बयान दे दिए हैं तो या कोर्ट उन पर भरोसा करे या फिर कहे कि वो झूठ बोल रहे हैं.
जस्टिस लोया को कोई बीमारी नहीं थी
दूसरी तरफ याचिकाकर्ता की तरफ से इंदिरा जयसिंह ने अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा कि जज लोया की मौत के पीछे कई सवाल है जिसका जवाब SIT से जांच के बाद ही मिल सकता है. उन्होंने कहा, 'लोया के परिवार में किसी को दिल संबंधी बीमारी का कोई रिकॉर्ड नहीं है, उनके 80 साल के पिता या माता को भी ब्लडप्रेशर या शुगर जैसी कोई बीमारी भी नहीं है, जबकि लोया 48 साल के थे और उनको भी दिल से जुड़ी कोई बीमारी नहीं थी.' उनकी सेहत के बारे में इंदिरा जयसिंह ने बताया कि वो दो घंटे रोजाना व्यायाम करते थे. शराब और धूम्रपान से भी दूर रहते थे.
इंदिरा जयसिंह ने बताया कि घटना के दिन जस्टिस लोया दर्द के बावजूद अस्पताल में खुद सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर गए थे. ये भी साफ नहीं है कि उनकी ECG हुई थी या नहीं, और अगर हुई तो किस अस्पताल में हुई और किसने की.
उन्होंने कहा, 'पुलिस ने भी जांच में कोताही बरती. सीआरपीसी 174 के तहत कार्रवाई भी पूरी तौर पर नहीं की गई. साथ ही एफआईआर भी नहीं दर्ज की गई. पुलिस को इसकी केस डायरी बनाकर संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजनी चाहिए थी, इसके बाद मजिस्ट्रेट आगे की कार्रवाई करने का निर्देश देते.'
SIT जांच की मांग
मौत के बाद के घटनाक्रम पर सवाल उठाते हुए उन्होंने आगे कहा, 'यहां तक कि पुलिस रिपोर्ट में जज लोया का नाम भी गलत लिखा गया, जिसे 2016 में ठीक किया गया. इसके बाद जब शव को लातूर ले जाया गया तो उनके साथ कोई जज मौजूद नहीं थे. इंदिराजय सिंह ने जोर देते हुए कोर्ट के सामने कहा कि ये सारे सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब हर किसी को मिलना चाहिए और पूरे मामले की एसआईटी जांच होनी चाहिए.'
सोहराबुद्दीन शेख की सुनवाई कर रहे थे जस्टिस लोया
जस्टिस लोया केस की सुनवाई सोमवार को जारी रहेगी. जस्टिस लोया की मौत 1 दिसंबर, 2014 को नागपुर में हो गई थी. बता दें कि जस्टिस लोया बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख मामले की सुनवाई कर रहे थे. 2005 में सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर को गुजरात पुलिस ने अगवा किया और हैदराबाद में हुई कथित मुठभेड़ में उन्हें मार दिया गया था. सोहराबुद्दीन मुठभेड़ के गवाह तुलसीराम की भी मौत हो गई थी. इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी नाम जुड़ा था.
मामले से जुड़े ट्रायल को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में ट्रांसफर किया था. इस मामले की सुनवाई पहले जज उत्पत कर रहे थे, लेकिन इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के सुनवाई में पेश नहीं होने पर नाराजगी व्यक्त की थी. जिसके बाद उनका तबादला हो गया था. इसके बाद जस्टिस लोया के पास इस मामले की सुनवाई आई थी. फिर उनकी मौत के बाद जिन जज ने इस मामले की सुनवाई की, उन्होंने अमित शाह को मामले में बरी कर दिया था.