1994 के इस्माइल फारूकी केस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला गुरुवार को सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 1994 मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हमें 1994 वाले फैसले को समझने की जरूरत होगी.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मुस्लिम पक्षकारों की ओर से याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने 20 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था.
क्या था इस्माइल फारूकी केस
अयोध्या में कारसेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने 7 जनवरी, 1993 को अध्यादेश लाकर अयोध्या में 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया था. इसके तहत विवादित जमीन का 120x80 फिट हिस्सा भी अधिग्रहित कर लिया गया था जिसे बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर कहा जाता है.
केंद्र सरकार के इसी फैसले को इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में कहा था कि धार्मिक स्थल का सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है. इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर मुस्लिम समुदाय सहमत नहीं है. वे चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर दोबारा विचार करे. मुस्लिम समुदाय यह भी चाहता है कि अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक से जुड़े केस में फैसले से पहले 1994 के इस्माइल फारूकी मामले पर आए फैसले पर नए सिरे से विचार हो.
बता दें कि इस साल 7 जुलाई को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक से जुड़े मामले की जब सुनवाई कर रही थी तो मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं है, इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की मांग की थी. उनकी दलील थी मुस्लिम समुदाय की दलीलों को ध्यान से सुना और परखा जाए.
सुनवाई के दौरान राजीव धवन ने कहा था कि इस्लाम सामूहिकता का मजहब है. वैसे तो नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है, लेकिन जब शुक्रवार को सामूहिक नमाज होती है तो मस्जिद में उसे पढ़ा जाता है. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में इस्लाम की शुरुआत से ही यह परंपरा है.
मुस्लिम पक्षकार मोहम्मद खालिद कहते हैं कि इस संबंध में हमने कुरान की 24 आयतें सुप्रीम कोर्ट को सौंपी हैं, जिनसे यह साबित होता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का मुख्य अंग है.
वहीं, हिंदू पक्षकारों का कहना है कि यदि इस मामले की सुनवाई दोबारा शुरू होती है तो इसका असर टाइटिल सूट से जुड़े मुख्य मामले की सुनवाई पर पड़ सकता है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट यदि इस मामले को संविधान की बड़ी बेंच के पास भेज देता है तो मुख्य मामले की सुनवाई लंबे समय तक अटक सकती है.