देश में घटते लिंगानुपात पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन परिवारों को इंसेंटिव देने को कहा जहां लड़की का जन्म हुआ हो. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को ऐसा निर्देश दिया. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से लोगों में यह संदेश जाएगा कि सरकार बच्चियों का ख्याल रख रही है. इससे कन्या भ्रूण हत्या में कमी आएगी और लिंगानुपात भी सुधरेगा.
स्वैच्छिक संस्था वॉलन्टरी हेल्थ एसोसिएशन ने जनहित याचिका दाखिल की थी. उसके वकील कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि तकरीबन सभी राज्यों में लिंगानुपात गिरा है. जिन राज्यों ने हलफनामा दाखिल किया है, उन्होंने इसे स्वीकारा भी है. इस पर जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने राज्य सरकारों से यह पूछा है कि लड़कियों को भी लड़कों की तरह जीने का अधिकार है.
कोर्ट ने कन्या भ्रूण हत्या करने वालों के खिलाफ प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (पीएनडीटी) एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने के बारे में ताजा स्थिति की जानकारी मांगी और साथ ही इस बारे में जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत बताई.
सुप्रीम कोर्ट ने लिंगानुपात पर हरियाणा, दिल्ली और यूपी के हलफनामों में दिए आंकड़ों पर संदेह जताया. कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को इन तीनों राज्यों के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ 3 दिसंबर को बैठक करने को कहा है ताकि संबंधित रजिस्टरों और रिकॉर्ड्स की जांच की जा सके. जिस आधार पर आंकड़े पेश किए गए हैं.
समिति को 10 दिसंबर तक अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है. उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से 2011 के जनगणना के आंकड़े पेश करने पर सुप्रीम कोर्ट ने उसे फटकार लगाई और कहा, 'यह आंकड़े 2011 के हैं. हम 2014 में हैं. क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अगले जनगणना के आंकड़े आने तक हमें 10 साल इंतजार करना होगा.'
ताजा अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल पांच लाख भ्रूण हत्याएं होती हैं. यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 से लेकर अब तक भारत करीब एक करोड़ लड़कियां खो चुका है जबकि 1991 के बाद से 80 फीसदी जिलों में पुरुषों का जनसंख्या अनुपात तेजी से बढ़ा है.