फेसबुक पर 'आपत्तिजनक पोस्ट' मामले में लगातार गिरफ्तारी और इस बाबत केंद्र के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि वह इंटरनेट पर ऐसे कंटेंट पोस्ट करने वालों को गिरफ्तार करने संबंधी कानून की संवैधानिक वैधता की जांच करेगा.
सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि आईटी एक्ट की धारा 66A में सजा के जो प्रावधान हैं, उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े मामलों पर लागू नहीं किया जाएगा. अदालत चाहे तो इस धारा को असंज्ञेय बनाने पर विचार कर सकती है. इस तरह पुलिस ऐसे मामलों पर खुद अपनी तरफ से कार्रवाई नहीं कर पाएगी और तब मजिस्ट्रेट की इजाजत के बाद ही कार्रवाई हो सकेगी.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी इज्जतदार शख्स क्या तब तक जेल में ही रहेगा, जब तक कोई जज उनकी नहीं सुनेगा. कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पूछा कि यह साइबर सेल क्या है? आप कुछ पुलिस वालों का ग्रुप बनाकर उसे साइबर सेल नाम दे देते हो और फिर वह अचानक एक्सपर्ट बन जाते हैं?
सरकार की ओर से कहा गया कि वह धारा 66A को किसी भी तरह बचाने की कोशिश नहीं कर रही है. इसमें संशोधन के जो भी सुझाव आएंगे, उन पर विचार किया जाएगा. अदालत ने कहा कि हमें इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप इस बारे में क्या सोच रहे हैं. यह कानून इस वक्त लागू है इसलिए हम इसकी संवैधानिक वैधता जांच सकते हैं.