सीबीआई जज बीएच लोया की मौत के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. एसआईटी जांच की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
महाराष्ट्र सरकार जज लोया की मौत मामले में एसआईटी जांच का विरोध कर रही है. साथ ही इस बाबत दायर याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया है. फडणवीस सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी का कहना है कि ये याचिका न्यायपालिका को सेकेंडलाइन करने के लिए दायर की गई है, क्योंकि इसके जरिए राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है.
मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि इस मामले में जज लोया के साथी जजों के बयान के बाद उनकी मौत के पीछे अब कोई रहस्य नहीं रह गया है. लिहाजा इसकी आगे जांच की कोई जरूरत नहीं है. CBI के स्पेशल जज लोया की मौत 30 नवंबर 2014 को हुई थी. तीन साल तक किसी ने इस पर उंगली नहीं उठाई और अब अचानक इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. ये सारे सवाल कारवां की नवंबर 2017 की खबर के बाद उठाए गए, जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसके तथ्यों की सत्यता की जांच नहीं की.
रोहतगी ने कहा कि 29 नवंबर को लोया के साथ मौजूद रहे चार जजों ने अपने बयान दिए हैं. वो ही चारों जज उनकी मौत के वक्त भी साथ थे. उन्होंने लोया के शव को एंबुलेंस के जरिए लातूर भी भेजा था. रोहतगी ने दलील दी कि पुलिस रिपोर्ट में जिन चार जजों के नाम हैं, उनके बयान पर भरोसा नहीं करने की कोई वजह नहीं है. इनके बयान पर भरोसा करना ही होगा. अगर कोर्ट इनके बयान पर यकीन नहीं करती और जांच का आदेश देती है, तो ये चारों जज साजिश में शामिल माने जाएंगे.