सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का दफ्तर सूचना के अधिकार (RTI) के दायरे में आएगा या नहीं, इस पर जल्द ही फैसला आने वाला है. गुरुवार को शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने इस मसले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट को आरटीआई के दायरे में लाने के मामले की सुनवाई के दौरान एटॉर्नी जरनल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की तरफ से दलील रखी.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनी और फिर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इस बीच अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष कहा कि जजों की नियुक्ति पर कॉलेजियम जिन तथ्यों पर विचार करती है, उनकी सूचना सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए. हालांकि जजों की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए.
इससे पहले जनवरी 2010 में दिए गए 88 पन्नों के अपने निर्णय में दिल्ली हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को बरकरार रखा था. इस फैसले में कोर्ट ने केन्द्रीय सूचना आयोग के निर्देश के खिलाफ आपत्ति जताने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. साल 2010 में दायर इस याचिका को 2016 में संविधान बेंच को भेजे जाने का निर्णय सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने किया था.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट एक बार चीफ जस्टिस के दफ्तर को आरटीआई के दायरे में आने का समर्थन कर चुका है. शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने कहा था कि सभी संवैधानिक अधिकारियों के कार्यालयों को उनके कार्यों में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लाना चाहिए. इसके लिए इनको आरटीआई कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए. शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि चीफ जस्टिस और राज्यपाल के कार्यालयों को आरटीआई के दायरे के लाया जाना चाहिए.
अगर सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस के दफ्तर को आईटीआई के दायरे में रखा, तो आम नागरिक सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से जानकारी हासिल कर सकेंगे.