लोकसभा का नेता विपक्ष का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. लोकपाल की नियुक्ति को लेकर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है. उसने 4 हफ्तों के अंदर जवाब मांगा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकपाल की चयन प्रक्रिया में नेता विपक्ष का पद अहम है, इसलिए सरकार को नेता विपक्ष पर विचार करना चाहिए. अगर सरकार नेता विपक्ष के विवाद को सुलझाने में नाकाम रहती है, तो वो निर्णायक फैसला सुना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से दो सवाल पूछे
1. सरकार लोकपाल कानून को किस तरह से लागू करने जा रही है?
2. लोकपाल के पैनल की नियुक्ति के लिए मौजूदा कानून के तहत नेता विपक्ष का होना जरूरी है. अगर नेता विपक्ष नहीं है तो ऐसी स्थिति में वो किस तरह से आगे बढ़ने की तैयारी कर रही है.
नेता विपक्ष की अहमियत का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह पद सदन में सरकार के अलावा दूसरे पक्ष की बात सामने रखता है. लोकपाल की नियुक्ति में भी नेता विपक्ष की भूमिका अहम है इसलिए सरकार को इस पर विचार करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि 9 सिंतबर को इस मामले पर आखिरी सुनवाई होगी. नेता विपक्ष मुद्दे और लोकपाल बिल को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता.
आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी का मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाया था.
आपको बता दें कि 9 सदस्यों वाले लोकपाल की नियुक्ति एक पैनल द्वारा की जाएगी. प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर के अलावा लोकसभा के नेता विपक्ष भी इस पैनल में हैं. कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते नेता विपक्ष के पद का दावा करती रही है लेकिन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने इसे खारिज कर दिया. दलील दी गई कि इस पद के लिए कम से कम 55 सदस्यों की जरूरत पड़ती है, पर कांग्रेस के सिर्फ 44 सांसद हैं.