फ़र्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पायी गई सरकारी नौकरी या किसी कोर्स में एडमिशन को किसी तरह की सुरक्षा नहीं मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम फैसला महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि फ़र्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षित वर्ग की नौकरी पाना या एडमिशन पाना एक अपराध है. फ़र्ज़ी प्रमाण पत्र के आधार पर कि किसी ने नौकरी पा ली और तो अधिक समय तक नौकरी कर लिया है या पढ़ाई कर ली है इस आधार पर उसकी नौकरी को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता.
चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति बहुत लंबे समय से नौकरी कर रहा है और बाद में उसका प्रमाणपत्र फर्जी पाया जाता है तो, उसे सेवा में बने रहने की अनुमति दी जा सकती है. कोर्ट ने ये भी साफ़ किया है कि यह आदेश केवल भविष्य के मामलों में लागू होगा. कोर्ट ने कहा कि 'भले ही फर्ज़ी प्रमाणपत्र के आधार पर कोई 20 साल की नौकरी कर चुका हो, न केवल उसकी नौकरी जाएगी, बल्कि उसे सजा भी होगी.'
बॉम्बे हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी लगाई थी. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जाति प्रमाण पत्र को सरकार की कमेटी अगर गलत साबित करती है और कर्मचारी, कमेटी के फैसले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती देता है, जिसमें कई साल लग जाते हैं, ऐसे में उस कर्मचारी की नौकरी सुरक्षित रहनी चाहिए. उसको गलत प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी से नहीं हटाया जा सकता. वो नौकरी में बना रह सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर सरकारी कमेटी कर्मचारी के प्रमाण पत्र को फ़र्ज़ी पाती है तो तुरंत प्रभाव से उसे नौकरी से हटा सकते हैं.
गौरतलब है कि पिछले महीने केंद्र सरकार ने भी कहा था कि जो लोग फर्ज़ी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं, उन्हें बर्ख़ास्त किया जाएगा. सरकार ने अलग-अलग डिपार्टमेंट में ऐसे लोगों के खिलाफ जानकारी जुटाई जा रही है.
276 लोगों को किया गया बर्खास्त
कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने मार्च में लोकसभा में दिए गए लिखित जवाब में कहा था कि 1832 लोगों ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी ले रखी है. इनमें से 276 को नौकरी से बर्खास्त किया गया है और 521 के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की तैयारी हो रही है.