दिल्ली पर दबदबे को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच जंग जगजाहिर है. दोनों की इस जंग का खामियाजा हमेशा जनता को भुगतना पड़ता है. 2016 में जब इस मामले में हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया तो उस समय केंद्र ने कहा कि 'ये हमारी जीत है'. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिल्ली सरकार (केजरीवाल सरकार) अपनी जीत बता रही है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने SC के फैसले के तुरंत बाद ट्वीट कर इसे दिल्ली की जनता की जीत बताई, और सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया. जबकि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने फैसले को ऐतिहासिक करार दिया, उन्होंने कहा कि अब सरकार अपना काम कर सकेगी. जबकि बीजेपी और कांग्रेस का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ नया नहीं कहा है. कोर्ट ने केवल संविधान में जो बातें हैं उसे दोहराया है और इसमें दिल्ली सरकार की जीत जैसी कोई बात नहीं है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार अपने-अपने तरीके से भुनाने में लगी है. ऐसे में कोर्ट की वो टिप्पणी और फैसले की अहम बातें जनता तक दोनों पक्ष अपने तरीके से पहुंचाने में लगे हैं. लेकिन हम आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किसको क्या मिला और किसके लिए ये झटका साबित हुआ और किसका पक्ष सही में मजबूत हुआ?
दिल्ली सरकार के पक्ष में ये बातें
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार ही राज्य को चलाने के लिए जिम्मेदार है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मतभेदों के बीच भी राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुल कर काम करना चाहिए. असली शक्ति और जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की ही बनती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अधिकारियों के तबादले का हक अब केजरीवाल सरकार के पास आ गया है, जो बड़ी जीत है.
दिल्ली सरकार के खिलाफ बातें
सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले अपने फैसले में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता है. इससे इतर सभी मामलों में चुनी हुई सरकार कानून बना सकती है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्र तब फेल हो जाता है, जब देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं. कोर्ट ने कहा कि उप-राज्यपाल को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गए हैं. पुलिस, लॉ ऐंड ऑर्डर और लैंड के मामले में सभी अधिकारी एलजी के पास ही रहेंगे. यानी केजरीवाल सरकार की ये मांगें ठुकरा दी गईं.
केंद्र के पक्ष में SC की बातें
दिल्ली में पुलिस, लॉ एंड ऑर्डर और लैंड के मामले में सभी अधिकारी एलजी के पास ही रहेंगे. इससे इतर सभी मामलों में चुनी हुई सरकार कानून बना सकती है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि एलजी का काम राष्ट्रहित का ध्यान रखना है. कोर्ट ने कहा कि मंत्रिपरिषद के सभी फैसलों से उप-राज्यपाल को निश्चित रूप से अवगत कराया जाना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें उप-राज्यपाल की सहमति आवश्यक है.
केंद्र को नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा. उपराज्यपाल मंत्रिमंडल के फैसलों को लटका कर नहीं रख सकते हैं. उन्हें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि चुनी हुई सरकार के पास लोगों की सहमति है.
SC ने बताई उपराज्यपाल की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया है कि उपराज्यपाल को सिर्फ कैबिनेट की सलाह पर ही फैसला करना चाहिए अन्यथा मामला राष्ट्रपति के पास भेज देना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि एलजी का काम दिल्ली सरकार के हर फैसले पर रोकटोक करना नहीं है, ना ही मंत्रिपरिषद के हर फैसले को एलजी की मंजूरी की जरूरत नहीं है.
फैसले की बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ ऐसी बातें कहीं, जिसे दोनों पक्षों को समझने की जरूरत है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए. दिल्ली में किसी तरह की अराजकता की कोई जगह नहीं है, सरकार और एलजी को साथ में काम करना चाहिए. दिल्ली की स्थिति बाकी केंद्र शासित राज्यों और पूर्ण राज्यों से अलग है, इसलिए सभी साथ काम करें.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान का पालन सभी की ड्यूटी है, संविधान के मुताबिक ही प्रशासनिक फैसले लेना सामूहिक ड्यूटी है. SC ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच भी सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए. राज्यों को राज्य और समवर्ती सूची के तहत संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने का हक है.
गौरतलब है कि दिल्ली को लेकर ये बड़ा फैसला पांच जजों की संविधान पीठ ने दिया है, जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे.