आज आधार तो कल अयोध्या! यानी बड़े फैसलों का लगातार दूसरा दिन. एक दिन में 9 फैसले सुनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच गुरुवार को 4 और अहम मामलों पर फैसले सुनाएगी. इनमें 2 मामले ज्यादा चर्चित हैं.
एक मामला अयोध्या के रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ा है तो दूसरा जारता यानी व्यभिचार से. मतलब यह कि व्यभिचारी पत्नी पर पति की तरह आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग का है.
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाए गए मसले में इस्माइल फारुकी फैसले के उस अंश पर पुनर्विचार की मांग पर अपना आदेश सुनाएगी जिसमें कहा गया है कि नमाज अदा करने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है.
इस मामले में 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. तीन सदस्यीय विशेष पीठ तय करेगी कि पांच बेंच की संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर फिर विचार करने की जरूरत है या नहीं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट टाइटल सूट से पहले अब वो इस पहलू पर सुनवाई कर रहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. कोर्ट ने यह भी कहा था पहले ये तय होगा कि संविधान पीठ के 1994 के उस फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है. इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार होगा.
विवाहेत्तर संबंधों पर फैसला
दूसरे मामले में जारता यानी पत्नी के किसी अन्य विवाहित पुरुष के साथ संबंध. पत्नी अगर किसी दूसरे विवाहित पुरुष से अवैध संबंध बनाए तो उस पर भी IPC की धारा 497 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा या नहीं. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा.
मौजूदा कानून में ऐसा मुकदमा केवल पति पर ही दर्ज हो सकता है, जो किसी दूसरी विवाहित महिला से अवैध संबंध बनाता है, लेकिन पत्नी ऐसा करे तो उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 23 अप्रैल को एडल्टरी मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि एडल्टरी अपराध है और इससे परिवार और विवाह तबाह होता है. आईपीसी की धारा-497 (एडल्टरी) के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है जबकि महिला विक्टिम मानी गई है.
सुप्रीमकोर्ट में दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान है वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है. अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंधित बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति एडल्टरी का केस दर्ज करा सकता है लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ और मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है जो भेदभाव वाला है और इस प्रावधान को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए.याचिकाकर्ता ने कहा है कि पहली नजर में धारा-497 संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है.
केंद्र सरकार की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि विवाह की एक संस्था के तौर पर पवित्रता को बनाए रखने के लिए एडल्टरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने कहा था कि एडल्टरी की धारा-497 साफ तौर पर मनमाना और एकतरफा है. सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.