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सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को गुंडागर्दी पर चेतावनी दी

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को चेतावनी दी कि अपने एक सहयोगी की मौत के बाद इलाहाबाद के अस्पताल में तोड़फोड़ करने वाले वकीलों की गुंडागर्दी के खिलाफ वह कड़ाई बरतेगा और चिकित्सकीय लापरवाही के आरोपी कुछ डॉक्टरों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.

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उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को चेतावनी दी कि अपने एक सहयोगी की मौत के बाद इलाहाबाद के अस्पताल में तोड़फोड़ करने वाले वकीलों की गुंडागर्दी के खिलाफ वह कड़ाई बरतेगा और चिकित्सकीय लापरवाही के आरोपी कुछ डॉक्टरों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.

शीर्ष न्यायालय ने जीवन ज्योति अस्पताल की कथित लापरवाही से वकील लक्ष्मी कांत मिश्रा की मौत से जुड़ी घटना पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चल रही कार्यवाही पर भी रोक लगा दी. वकील को दो फरवरी को एक सड़क दुर्घटना में गंभीर चोट आने पर अस्पताल ले जाया गया था.

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और दीपक वर्मा की अवकाश पीठ ने कहा वकील गुंडागर्दी में लिप्त नहीं हो सकते. हम इससे कड़ाई से निबटेंगे. हम उन्हें होश में लाएंगे. शीर्ष न्यायालय ने इस बात पर अफसोस जताया कि कुछ वकीलों ने पीड़ित डॉक्टरों की ओर से पैरवी करने आने वाले अन्य वकीलों को रोका और उनके साथ मारपीट की. पीठ ने कहा आप ऐसी गुंडागर्दी नहीं कर सकते. यदि आप में साहस है तो यह शीर्ष न्यायालय के सामने कीजिए फिर हम आपको दिखायेंगे.

न्यायालय ने ये टिप्पणियां डॉक्टर ए के बंसल और जीवन ज्योति अस्पताल के कुछ अन्य डॉक्टरों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते वक्त की जिन्होंने मृतक के भाई सुरेन्द्र नाथ मिश्रा की शिकायत पर हत्या का मामला दर्ज किये जाने को चुनौती दी है. न्यायालय में अपनी याचिका में बंसल ने कहा कि सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा प्रयास के बावजूद मिश्रा का निधन अस्पताल में हुआ क्योंकि उन्हें सेप्टीसीमिया हो गया था.

अस्पताल ने दावा किया कि नाजुक हालत में लाये जाने के बाद लक्ष्मी कांत मिश्रा का अस्पताल में 59 दिन इलाज चला और मृत्यु से पहले वह कोमा में चले गये. हालांकि घटना के बाद कई वकील अस्पताल में घुस गये और परिसर में तोड़फोड़ की तथा अस्पताल में कर्मचारियों एवं मरीजों के साथ मारपीट की. पुलिस में आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दायर करने के साथ मिश्रा के भाई ने आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी दाखिल की थी.

याचिका में आरोप लगाया गया कि बंसल की तरफ से जब वकील जे एस सेंगर उपस्थित हुए तो उनके साथ मारपीट की गयी और वकीलों ने उच्च न्यायालय में अन्य लोगों को डॉक्टरों की पैरवी करने से रोक दिया. इस आधार पर याचिकाकर्ता ने दलील दी कि निष्पक्ष सुनवाई के लिए मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानान्तरित की जाये. याचिका के अनुसार बंसल ने हालांकि मिश्रा का इलाज नहीं किया लेकिन उनके खिलाफ हत्या का मामला सिर्फ इसलिए दर्ज किया गया कि वह अस्पताल के निदेशक हैं.

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