विदेश मंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता, एमपी के विदिशा से सांसद सुषमा स्वराज ने कहा है कि वह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं. लेकिन पार्टी फैसला करती है तो वह इस पर विचार करेंगी. इसके बाद सवाल उठने लगे हैं कि वह अपनी बीमारी की वजह से ऐसा कह रही हैं या कोई और पीड़ा है.
एक ट्वीट के जवाब में उन्होंने कहा कि वह सक्रिय राजनीति नहीं छोड़ रही हैं, स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वह चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं. ट्वीट कर अपनी समस्या बताने वालों की मदद करके सुषमा ने एक नजीर स्थापित की थी. 2016 में एम्स में उनका किडनी ट्रांसप्लांट किया गया था. महीनों तक वह कामकाज से दूर थीं लेकिन ट्वीट करने वालों को तब भी मदद मिलती रही. फिर उन्होंने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया. वह भी पार्टी से बिना पूछे और बिना बताए. इसके पीछे स्वास्थ्य कारण ही हैं या कुछ और..
जेपी आंदोलन से अपना राजनैतिक सफर शुरू करने वाली सुषमा स्वराज 25 साल की उम्र में हरियाणा के देवीलाल मंत्रिमंडल में मंत्री बन गई थीं. 80 के दशक में भाजपा के गठन के दौरान वह भाजपा में शामिल हो गईं. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह दिल्ली की मुख्यमंत्री भी बनीं. सुषमा 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं.
अंग्रेजी और हिंदी में समान पकड़ रखने वाली सुषमा का भाषण सुनने के लिए लोग इंतजार करते थे. चुनाव प्रचार के दौरान भी उनकी भारी डिमांड रहती थी. आज भी जब वह बोलने खड़ी होती हैं तो विरोधियों को अपने तर्कों से चुप करा देती हैं. कई लोग यह भी कहते हैं कि अटल के बाद अगर कोई अपने भाषणों से मंत्रमुग्ध करा देता है तो वह सुषमा स्वराज ही हैं.
सुषमा ने सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक के बेल्लारी से लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गई थीं. 2004 में एक बार फिर वह सोनिया के खिलाफ खड़ी हो गईं जब यूपीए को बहुमत मिलने के बाद सोनिया को पीएम बनाने की बात उठने लगी. तब सुषमा ने कहा था कि अगर विदेशी मूल की महिला को पीएम बनाया जाता है तो वह अपना सर मुड़ा लेंगी, सफेद वस्त्र पहनेंगी, जमीन पर सोएंगी और एक भिक्षुणी का जीवन जीएंगी. कहा जाता है कि बढ़ते विरोध को देखते हुए सोनिया ने खुद मनमोहन का नाम आगे कर उन्हें प्रधानमंत्री बनवा दिया था.
2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. वह देश की पहली महिला विदेश मंत्री हैं. ऐसा माना जाता है कि महत्वपू्र्ण होते हुए भी यह मंत्रालय जनता से सीधे नहीं जुड़ा है. विदेश मामलों में मंत्रालय से ज्यादा पीएमओ की रुचि ज्यादा रहती है. स्वास्थ्य कारणों की वजह से कई बार वह मंत्रालय में समय नहीं दे पाईं लेकिन ट्विट करने के बाद जिस तरह से लोगों को विदेश मंत्रालय की, खासतौर से पासपोर्ट के मामलों में जो राहत मिली उसे नजीर माना जाता है. राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि मानव संसाधन जैसा मंत्रालय सुषमा की जगह स्मृति ईरानी को देकर संदेश साफ कर दिया गया था.
ललित मोदी मामले में नहीं मिला पार्टी का साथ
जून 2015 में आरोप लगे कि आईपीएल के पूर्व प्रमुख ललित मोदी को सुषमा स्वराज की मदद से लंदन का वीजा मिला जबकि भारत में उनके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी था. आरोप था कि भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज के कहने पर उन्हें वीजा दिया गया. वाज ने सुषमा स्वराज का नाम लेकर आव्रजन अधिकारी पर दबाव बनाया था. सुषमा ने बाद में यह कहकर सफाई दी थी ललित कैंसर पीड़ित पत्नी के इलाज के लिए लंदन जा रहे थे. उन्होंने मानवीय आधार पर मदद की थी.
विपक्षी दलों ने इस मसले पर उन्हें घेर लिया था. लेकिन भाजपा के किसी नेता ने सुषमा स्वराज के पक्ष में बयान देने से परहेज किया. बाद में सुषमा ने संसद में दावे के साथ कहा था कि कोई एक पुर्जा या एक मेल दिखा दे कि मैंने मोदी को दस्तावेज देने के लिए किसी को लिखा हो. इसके बाद पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आरोप लगाए कि स्वराज की बेटी बांसुरी ललित मोदी की लीगल टीम में हैं. भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इसका यह कहकर बचाव किया था कि यह उनका प्रोफेशन है इसमें बुराई क्या है.
मोसुल पर भी घिरीं थीं, अकेले किया था मुकाबला
इराक के मोसुल में 39 भारतीय मारे गए थे. सुषमा ने 2017 में कहा था कि जब तक उनके पास प्रमाण नहीं मिल जाता वह कुछ नहीं कह सकतीं. लेकिन 2018 में बताया था कि मोसुल में आईएसआईएस के हाथों पकड़े गए 40 में से 39 लोगों को मार दिया गया है. एक आदमी खुद को मुसलमान बताकर बच गया था जिसने यह बात बताई. इसके बाद विपक्ष ने उन्हें घेर लिया था और उनके इस्तीफे तक की मांग की गई थी. विपक्ष का आरोप था कि 39 परिवार के लोगों को अंधेरे में रखा गया. इस विवाद का सुषमा ने तकरीबन अकेले सामना किया था.
पासपोर्ट मामले पर ट्रोल हो गईं
2018 में एक हिंदू लड़की ने सुषमा को ट्वीट कर बताया था मुसलमान लड़के से शादी करने के कारण लखनऊ कार्यालय ने उसका पासपोर्ट रोक दिया है. विदेश में रहते हुए भी सुषमा ने पासपोर्ट मुहैया कराया था और परेशान करने के आरोपी अधिकारी का ट्रांसफर गोरखपुर कर दिया था. इसके बाद सुषमा स्वराज ट्विटर पर ट्रोल हो गई थीं उन्होंने दूसरे समुदाय से जुड़े मामले में मदद की. इसके कुछ दिन बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उनके पक्ष में बयान दिया था. इससे पहले सुषमा अकेले इस मुद्दे पर लड़तीं रहीं.
रेड्डी बंधुओं के मसले पर भी पड़ीं थीं अकेले
कर्नाटक में येदुरप्पा मंत्रिमंडल में रेड्डी बंधुओं के शामिल करने पर भी सुषमा को घेरा गया था लेकिन यह 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले की बात थी. सुषमा ने दावे के साथ कहा था कि इसमें उनका कोई हाथ नहीं है. जब उन्हें मंत्री बनाया गया तब अरुण जेटली कर्नाटक के प्रभारी थे. बाद में येदुरप्पा ने भी बयान दिया था कि उन्होंने रेड्डी बंधुओं को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था. ऐसा भी कहा जाता है उनके बेवाक बयानों ने उनके लिए कई बार मुश्किलें खड़ी कीं.
न पार्टी से पूछा, न बताया
आखिर उन्होंने चुनाव न लड़ने के बारे में एकाएक घोषणा क्यों की. बताया जा रहा है कि उन्होंने न तो पार्टी से इस बारे में पूछा और न इसके बारे में किसी को बताया. तो क्या यह माना जाए कि मोदी से उनका मन नहीं मिल पाया या मन ही मन कोई घुटन थी जिसने यह फैसला लेने पर मजबूर किया. 4 दिन पहले पीएम मोदी जब विदेश दौरे से लौटे थे तो सुषमा उनकी आगवानी करने एयरपोर्ट पर पहुंची थी.
दोनों की बातचीत से कहीं से ऐसा नहीं लग रहा है कि सुषमा अब चुनावी राजनीति को अलविदा कहने वाली हैं. उनकी घोषणा पर कांग्रेसी नेताओं ने तो प्रतिक्रिया दी है लेकिन भाजपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. शशि थरूर ने ट्वीट कहा कि तमाम राजनैतिक मतभेदों के बाद उन्हें इस बात का दुख है कि सुषमा अब संसद में नहीं दिखाई देंगी. पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम ने कहा कि एमपी के माहौल को देखते हुए उन्होंने समझदारी भरा फैसला लिया है.
स्वपनदास गुप्ता के ट्वीट के जवाब में सुषमा ने यह स्पष्ट किया है कि वह राजनीति से संन्यास नहीं ले रही हैं बल्कि चुनावी राजनीति से अलग हो रही हैं.