चार साल पहले इराक के मोसुल से अगवा हुए 39 भारतीय नागरिक मारे जा चुके हैं. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने खुद संसद को इसकी जानकारी दी. 2014 में भारत से मोसुल में काम करने गए मजदूरों को आतंकियों ने अगवा कर लिया था. जब उन्होंने भागने की कोशिश की तो आईएसआईएस के आतंकियों ने उन्हें घेरकर मार दिया. हालांकि, बंधकों में से अपनी जान बचाकर भारत लौटने वाले हरजीत मसीह ने पहले ही दावा किया था कि बाकी सभी 39 भारतीय मार दिए गए हैं. लेकिन सरकार ने उनके इस दावे को मानने से इनकार कर दिया. पिछले साल जुलाई में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ कह दिया कि जब तक सबूत नहीं मिल जाते, वो अगवा किए भारतीयों को मृत नहीं मान सकतीं.
अब भारत की विदेश मंत्री चाहती हैं कि चार साल में 39 शवों की शिनाख्त को भारत सरकार की कामयाबी माना जाए. लेकिन कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोल दिया है. कांग्रेस ने सरकार की देरी पर सवाल उठाते हुए इसकी वजह पूछी है.
दरअसल, भारत के 39 कामगार इराक के शहर मोसुल में नौकरी करते थे. जून 2014 में बगदादी के लोगों ने जब मोसुल पर धावा बोला तो वो निकल नहीं सके और आईएसआईएस के चंगुल में फंस गए. जबकि हरजीत मसीह जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब रहे. बगदादी के आतंकियों ने बंधकों को चार साल पहले ही मार डाला था. लेकिन सियासत में उलझी सरकार ने पंजाब चुनाव तक सांस रोके रखी, क्योंकि 39 में से 31 पंजाब के थे.
I told the truth that 39 Indians were killed. The government has misled the 39 families who lost their relatives: Harjit Masih, man who returned from Mosul earlier, claimed that 39 Indians were killed by ISIS there. pic.twitter.com/Fvz74egOCz
— ANI (@ANI) March 20, 2018
वहीं, विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह कह रहे हैं कि देरी इसलिए हुई कि रडार को समझने में समय लग गया. चार साल से भारत का रडार अंतरिक्ष से इराक की कब्रों के भीतर झांक रहा था. भारत सरकार का इस देरी में कोई हाथ नहीं था. रडार ने आसमान से खोजकर बताया कि शव कहां गड़े हुए हैं.
— Vijay Kumar Singh (@Gen_VKSingh) March 20, 2018
विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह कह रहे हैं कि देरी इसलिए हुई कि रडार को समझने में समय लग गया. चार साल से भारत का रडार अंतरिक्ष से इराक की कब्रों के भीतर झांक रहा था. भारत सरकार का इस देरी में कोई हाथ नहीं था. रडार ने आसमान से खोजकर बताया कि शव कहां गड़े हुए हैं.
पिछले साल 27 जुलाई को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस बात पर तीखा ऐतराज जताया था कि मोसुल में गायब भारतीयों के बारे में क्यों कहा जा रहा है कि वो मार डाले गए होंगे. उन्होंने कहा था कि जबतक मेरे पास उनके मारे जाने के सबूत नहीं मिलते, मैं उन्हें डेड डिक्लेयर नहीं करूंगी. मैं उनको मृत घोषित नहीं करूंगी. बिना सबूत के किसी को कह देना कि वो मर गया यह व्यक्तिगत तौर पर पाप है.
The MEA and particularly my colleagues @SushmaSwaraj Ji and @Gen_VKSingh Ji left no stone unturned in trying to trace and safely bring back those we lost in Mosul.
Our Government remains fully committed towards ensuring the safety of our sisters and brothers overseas.
— Narendra Modi (@narendramodi) March 20, 2018
इस पाप से मुक्त होने में भारत सरकार और सुषमा स्वराज को चार बरस लग गए. जनरल वीके सिंह ने इस तलाश में जमकर इराक भ्रमण किया, लेकिन इस खोज को लेकर वो कितने गंभीर थे और इसे इराकी सरकार कितनी तवज्जो दे रही थी इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 24 अक्टूबर 2017 को जब वो बगदाद पहुंचे तो न तो इराक के प्रधानमंत्री देश में मौजूद थे, न विदेश मंत्री और न ही रक्षा मंत्री.
सरकार के मुताबिक, इस देरी में सवाल सिर्फ सबूत का था. लेकिन सुषमा स्वराज ने इस सूबत की सियासत में जिस आदमी को झूठा बता डाला है वो पहले दिन से कह रहा है कि कोई नहीं बचा होगा. सवाल ही नहीं उठता है. हरजीत मसीह जैसे-तैसे मोसुल से भाग निकला था. वो बगदादी के बारूदी आतंक का इकलौता गवाह है, लेकिन उसकी गवाही सुषमा स्वराज को आजतक कभी विश्वसनीय नहीं लगी. हरजीत मसीह आज भी हिंदुस्तान में रहते हैं. वो जो हमेशा से बोल रहे थे वही आज बोल रहे हैं.