विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सोमवार शाम संयुक्त राष्ट्र महासभा यानी यूएनजीए को संबोधित करेंगी. इस दौरान वो न सिर्फ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की ओर से कश्मीर पर लगाए गए आरोपों का करारा जवाब देंगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक समझौते यानी सीसीआईटी पर तमाम देशों की रायशुमारी जुटाने पर भी जोर देंगी. भारत इस समझौते के जरिये अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को दुनियाभर में अलग-थलग करने की कूटनीति में जुटा है.
सीसीआईटी क्या है?
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक समझौता भारत ने 1996 में शुरू किया था. इस समझौते पर दस्तखत करने वाले देश आतंकवादी गुटों को सुरक्षित पनाहगाह या आर्थिक मदद मुहैया नहीं कराने के लिए बाध्य होंगे.
इसके तहत अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के किसी भी रूप को अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाने का प्रस्ताव है.
यह समझौता यूएनजीए की तदर्थ समिति के सामने विचाराधीन है. इस समझौते को लेकर सबसे बड़ा पेंच यह फंसा हुआ है कि इस समझौते में निहित 'आतंकवाद' और 'आतंकवादियों' की परिभाषा को लेकर कुछ देशों के बीच मतभेद हैं. इनमें पश्चिम के भी देश हैं.
2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमलों के बाद भारत इस समझौते को लागू कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है. 2012 में तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री ई अहमद ने यूएन में इस मसले को उठाया था और विश्व समुदाय से सीसीआईटी अपनाने का अनुरोध किया था. 27 सितंबर 2014 को पीएम मोदी ने यूएनजीए में एक बार फिर से सीसीआईटी का मुद्दा उठाया. बीते जुलाई में ढाका में हुए आतंकी हमले और हाल में उरी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत इस समझौते को लेकर फिर से गंभीर हुआ है.
आतंकवाद की परिभाषा
इस समझौते के तहत आतंकवाद के अपराध की परिभाषा इस तरह प्रस्तावित है:
1. कोई व्यक्ति गैरकानूनी तरीके से और जानबूझकर कोई ऐसा कृत्य करता है, जिससे
(a) किसी शख्स की मौत हो जाती है या गंभीर रूप से जख्मी हो जाता है, या
(b) सार्वजनिक या निजी संपत्ति को गंभीर तौर पर नुकसान पहुंचता है. इसमें सार्वजनिक इस्तेमाल की जगह, सरकारी जगह, सार्वजनिक परिवहन या पर्यावरण को नुकसान भी शामिल है. या
(c) ऐसे नुकसान से बड़े पैमाने पर आर्थिक क्षति होती है तो ऐसी घटना पर सरकार या अंतरराष्ट्रीय समुदाय ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने पर मजबूर होगी.