देश में हर तीसरे दिन एक सफाई कर्मी की मौत होती है. ये आकंड़ा देश के एक शीर्ष एनजीओ का है, जो सफाई कर्मियों के अधिकारों के लिए काम करता है. ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ नाम के इस एनजीओ के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2017 से अब तक 221 सफाई कर्मियों की मौत हो चुकी है. दिल्ली में इस महीने के शुरू में सीवर की सफाई के दौरान हुई छह मौतों को लेकर तमाम सफाई कर्मियों में नाराजगी है.
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ ने मंगलवार को सफाई कर्मियों की मौतों पर रोष जताने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया. सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCSK) ने अरविंद केजरीवाल सरकार को आरोप के कठघरे में खड़ा किया है कि वो पिछले साल वादा करने के बावजूद सुरक्षा उपायों को अमल में लाने में नाकाम रही. आयोग ने अपने लिए और अधिकारों की मांग को लेकर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है.
नरेंद्र मोदी सरकार स्वच्छ भारत मिशन की फ्लैगशिप योजना के तहत टॉयलेट के निर्माण के लिए कई हजार करोड़ खर्च रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सफाई कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी पर्याप्त कदम उठाए गए हैं?
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ का दावा है कि सफाई कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की ओर से देशभर में 666 मौतों का जो आंकड़ा दिया गया है, वो भ्रामक है. एनजीओ के मुताबिक 1993 से अब तक 1,760 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है. एनजीओ ने ये आंकड़ा 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से एकत्र किए हैं.
मोदी सरकार की स्वच्छ भारत अभियान पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में 9 करोड़ टॉयलेट बनाना है, ताकि गावों को ‘खुले में शौच’ से पूरी तरह मुक्त किया जा सके. सरकार का दावा है कि देशभर में मिशन के तहत अब तक आठ करोड़ टॉयलेट बनाए भी जा चुके हैं. लेकिन योजना में सफाई कर्मियों की सुरक्षा के लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं है. जाम सीवरों को खोलने के लिए देश में करीब आठ लाख सफाई कर्मचारी हैं, लेकिन उनको लेकर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं.
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ से जुड़े बेजवाडा विलसन ने इंडिया टुडे को बताया, ‘मोदी सरकार टॉयलेट निर्माण के लिए हजारों करोड़ आवंटित करती है, लेकिन ये मैनुअली सफाई करने वालों के पुनर्वास के लिए पर्याप्त मुआवजा देने में नाकाम रही है. पिछले बजट में इसके लिए महज 5 करोड़ रुपये रखे गए.’
विलसन ने बताया कि इन सफाई कर्मियों में से 98 फीसदी अनुसूचित जाति से और महिलाएं हैं. इस सबंध में राज्य सरकारों का रवैया भी निराशाजनक रहा है. आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में साल 2013 से अब तक 39 सफाई कर्मियों की मौत हुई है. इनमें से सिर्फ 16 मामलों में ही परिजनों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा दिया गया.
विलसन के मुताबिक स्वच्छ भारत अभियान को लॉन्च हुए भी चार साल हो गए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री की ओर से किसी भी सफाई कर्मी की मौत को लेकर कुछ नहीं बोला गया. विलसन ने कहा, ‘प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए वो क्या करने जा रहे हैं?’इंडिया टुडे की उस चिट्ठी तक पहुंच है, जिसके मुताबिक लाखों सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिए बना आयोग दंतहीन लगता है.
आयोग की ओर से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में कहा गया कि न्यायिक शक्ति ना होने की वजह से राज्य सरकारें उसके सवालों का जवाब नहीं देती. आयोग ने जब राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सफाईकर्मियों के बारे में आंकड़ें मांगे तो उनमें से आधों ने ही जवाब देना मुनासिब समझा, लेकिन वो भी आधी अधूरी जानकारी के साथ. अगस्त में लिखी चिट्ठी में आयोग ने खुद को एससी/एसटी आयोग जैसा दर्जा देने की मांग की.
आयोग की ओर से मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में कहा गया कि राज्य सचिवों की बात तो छोड़ दें, तो जिला स्तर के अधिकारी भी आयोग की ओर से दिए गए निर्देशों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते. आयोग के चेयरमैन मनहर भाई ज़ाला ने कहा, ‘हमारे पास शक्तियां नहीं है. पिछले साल कुछ मौतें होने पर हमने केजरीवाल सरकार को मानकों को लागू करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने एक साल में कुछ नहीं किया.’ ज़ाला ने आरोप लगाया कि बीते साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने एक बैठक में सुरक्षा मानकों को लागू करने का आश्वासन दिया था.
दिल्ली में द्वारका इलाके के डाबरी गांव निवासी 37 वर्षीय अनिल कुमार की 20 फीट गहरे सेप्टिक टैंक को खोलने की कोशिश करते वक्त मौत हो गई थी. अनिल ने हेलमेट और सेफ्टीगियर नहीं पहन रखा था. अनिल की मौत सिर में चोट लगने से हुई. मीडिया में अनिल की मौत की खबर छपी तो परिवार के लिए मदद के हाथ आगे बढ़े. अनिल परिवार में अकेला कमाने वाला था. परिवार में पत्नी के अलावा तीन नाबालिग बच्चे हैं. अनिल 14 सितंबर को घर के पास की कॉलोनी में सेप्टिक टैंक को खोलने के लिए गया था.
इंडिया टुडे पीड़ित परिवार में पहुंचा तो अनिल की पत्नी रानी ने बताया कि जोखिम होने के बावजूद पति ये काम करता था क्योंकि इसमें मौके पर ही पैसे मिल जाते थे. दिल्ली पुलिस ने उस शख्स को गिरफ्तार किया है जिसके लिए अनिल काम कर रहा था. रानी ने कहा, ‘मैं पति को आगाह करती रहती थी लेकिन वो सुनता नहीं था. पति ने रिक्शा भी चलाया लेकिन गुजारा नहीं चला. वो एक महीने बाद ही दोबारा सफाई का काम करने लगा.’
अनिल की मौत से कुछ दिन पहले ही दिल्ली के मोतीनगर इलाके में सीवेज प्लांट में घुसने की वजह से पांच सफाई कर्मियों को जान से हाथ धोना पड़ा था. सरकारी नियमों के मुताबिक नियोक्ता को सफाईकर्मियों को सीवर में जाने से पहले हेलमेट, केमिकल प्रूफ बॉडी सूट, एयर पाइप, ग्लव्स, सेफ्टी बेल्ट, जूते आदि मुहैया कराना जरूरी है. लेकिन सुरक्षा उपकरण संबंधी ये नियम लगता है कागज तक ही सीमित रह गए हैं.
दिल्ली स्थित एनजीओ उदय फाउंडेशन ऐसे ही हादसों वाले परिवारों को मदद पहुंचाने का काम कर रहा है. इस एनजीओ से जुड़े राहुल वर्मा कहते हैं, ‘कोई भी व्यक्ति होशो-हवास में ये काम नहीं कर सकता. या तो शराब या ड्रग्स के असर में होने पर ही ये काम करते हैं. धीरे धीरे उन्हें इतनी लत हो जाती है कि वो और कोई काम कर ही नहीं सकते. वो इसी को अपना नसीब मान लेते हैं.’
सफाईकर्मियों की मौतों को लेकर हो रही आलोचना के बाद केजरीवाल सरकार ने भी अब सुध ली है. ऐसे हादसों को रोकने के लिए केजरीवाल सरकार की ओर से अब स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (SOPs) लागू करने पर काम किया जा रहा है. ठेकेदारों को पंजीकृत किया जाएगा और सफाईकर्मियों को प्रशिक्षित किया जाएगा.
जब दिल्ली के सामाजिक कल्याण-एससी/एसटी मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से पूछा गया कि ये कदम पहले क्यों नहीं उठाए गए तो उन्होंने कहा, “ जल बोर्ड पर सफाई का काम दिया गया है लेकिन लोग कर्मचारियों को बुलाने से पहले जल बोर्ड से संपर्क नहीं करते. आम आदमी पार्टी के दिल्ली में सत्ता में आने के बाद आईपीसी की दारा 304 के तहत एफआईआर दर्ज की जा रही हैं. इससे पहले 304-ए के तहत केस दर्ज होते थे. अगर ऐसे किसी हादसे में मौत होती है तो गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया जाएगा.’