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पढ़ें कैसे आतंकवादी बना अब्दुल करीम टुंडा

दिल्ली के पास पिलखुवा के रहने वाले और कई बरसों से परिवार समेत पाकिस्तान में बसे आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा की कुंडली सामने आ चुकी है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने टुंडा से पूछताछ के बाद जो खुलासा किया है, उसी के आधार पर बताई जा रही है उसकी जीवन लीला. देखें चूरन वाले से सबक लेकर बम मास्टर बना टुंडा अब तक कहां क्या और कैसे करता रहाः

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अब्दुल करीम टुंडा
अब्दुल करीम टुंडा

दिल्ली के पास पिलखुवा के रहने वाले और कई बरसों से परिवार समेत पाकिस्तान में बसे आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा की कुंडली सामने आ चुकी है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने टुंडा से पूछताछ के बाद जो खुलासा किया है, उसी के आधार पर बताई जा रही है उसकी जीवन लीला. देखें चूरन वाले से सबक लेकर बम मास्टर बना टुंडा, अब तक कहां क्या और कैसे करता रहाः

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बढ़ई, वेटर जैसे कई काम किए पढ़ाई छूटने के बाद
पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाके में 1943 में एक मजदूर के घर पैदा हुआ टूंडा दिल्ली के नजीदीकी कस्बे पिलखुवा में आठवीं क्लास तक पढ़ा. पिता की मौत के बाद टुंडा की पढ़ाई छूटी. वह अपने चाचा के पास मेरठ गया इस आस से कि पढ़ाई फिर शुरू हो सके, मगर यहां उसे बैलगाड़ी और उसके पहिए बनाने के काम में जुटना पड़ा. जब उसकी मां को यह पता चला तो उसे वापस पिलखुवा बुला लिया. मगर उसकी पढ़ाई रुकी तो रुक ही गई. इसके बाद टुंडा ने वेटर, बढ़ई और वेल्डिंग मशीन के कारीगर जैसे कई काम किए.

कपड़े का काम पिटा तो गुजरात गया और दूसरी शादी की
छोटे मोटे कई काम करने के बाद टुंडा ने 1983 में कपड़ों का कारोबार शुरू किया. मगर यहां उसे बुरी तरह घाटा उठाना पड़ा. इसके बाद वह कुछ रिश्तेदारों के पास अहमदाबाद चला गया. यहां उसने मुमताज नाम की औरत से दूसरी शादी की. दोनों की उम्र में 29 साल का फासला है. अहमदाबाद में टुंडा कुछ दिनों तक कबाड़ी का काम करता रहा.

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एल्युमिनियम पाइप से बना देता था बम
टुंडा के कस्बे में एक चूरन वाला आता था. वो कई चूरन मिलाता, फिर एक सफेद पाउडर मिलाता और तीली दिखाता, सब धड़ाके के साथ भक्क से जलने लगता.यहां टुंडा ने सीखा पोटेसियम, चीनी और तेजाब के मिक्स्चर से धमाका करना. फिर आतंक की दुनिया में आने के बाद उसने बम बनाने का अपना तरीका ईजाद किया. एल्युमिनियम की रॉड के एक छोर पर कागज और मिट्टी भर दी जाती. फिर इसमें भरा जाता पोटैसियम क्लोरेट, चीनी और दूसरी तरफ से कागज से रॉड बंद कर दी जाती. अंदर एक तेजाब भरा कैप्सूल छोड़ दिया जाता. इससे लगती आग और फिर कुछ ही देर में होता धमाका. इस ढंग से टुंडा ने मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद समेत कई जगहों पर कुल 43 धमाके किए.

कैसे टूटा हाथ, कैसे पड़ा नाम टुंडा
अभी तक ज्यादातर लोग यही मानते थे कि अब्दुल करीम का नाम टुंडा पड़ा क्योंकि उसका एक हाथ एक बम के ट्रायल के दौरान उड़ गया. मगर स्पेशल सेल की मानें तो यह सही नहीं है. 1985 में टुंडा राजस्थान के टोंक इलाके में था. वह एक मस्जिद में जिहाद के लिए मीटिंग कर रहा था. उसी दौरान वह मौजूद लोगों को पाइप गन चलाकर दिखा रहा था. इसी दौरान गन फट गई और उसका एक हाथ उड़ गया.

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रत्नों के कारोबार के दम पर देखी दुनिया
जिहाद में सक्रिय होने के अलावा टुंडा दुनियावी दिखावे के लिए रत्नों का कारोबार भी करने लगा. इस दौरान उसे कुरान शरीफ का उर्दू में अनुवाद भी किया. उसने किताबें पढ़ पढ़कर अरबी भाषा भी सीखी.रत्नों के कारोबार में आने के बाद टुंडा ने सउदी अरब, दुबई, थाईलैंड और बांग्लादेश की यात्रा की.इस दौरान वह लखनऊ से इशू किए गए अब्दुल करीम नाम के पासपोर्ट पर सफर करता था.

पाकिस्तान गया साले से मिलने और आ गया आतंक के ट्रैप में
अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले टुंडा पाकिस्तान गया था अपने साले गयासुद्दीन से मिले. यहीं पर उसकी मुलाकात लश्कर ए तोएबा के मुखिया कुख्ताय आतंकवादी हाफिज सईद से हुई. इस काम में यूपी से जाकर मक्का में सैटल हुए एक मौलवी सफी उर रहमान ने मदद की. 1993 में टुंडा सईद से फिर मिला और हिंदुस्तान में दहशतगर्दी के लिए पैसों और सपोर्ट की मांग की. इसके बाद उसने राजधानी एक्सप्रेस में ब्लास्ट प्लान किए. मगर उसी दिन मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुए और टुंडा का काम हल्का पड़ गया आतंक के पैरामीटर पर.

ब्लास्ट के बाद कोलकाता भागा और तीसरी शादी की
93 के ट्रेन ब्लास्ट के बाद टुंडा कोलकाता चला गया. वहां एक मस्जिद में वो जकारिया से मिला. जकारिया के साथ टुंडा उसके गांव गया और कुछ ही दिनों में उसकी बेटी असमा से शादी कर ली. ये उसका तीसरा निकाह था. यहां से कुछ महीनों बाद वे बांग्लादेश चले गए और वहां एक फर्जी पासपोर्ट हासिल कर लिया.यहां से 1995 में टुंडा सउदी अरब गया और लश्कर के कई आतंकवादियों से मिला. उसने लश्कर की मदद मांगी अपने परिवार को पाकिस्तान शिफ्ट करने के लिए. 1996 में यह मुमकिन भी हो गया.इसके बाद टुंडा पूरी तरह से आतंक के काम में जुट गया.कहने को वह कराची के बाहर एक मदरसे में पढ़ाता था.

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