सुकना भूमि घोटाले में कोर्ट मार्शल का सामना कर रहे पूर्व सैन्य सचिव लेफ्टीनेंट अवधेश प्रकाश अपने खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए सशस्त्र बल पंचाट पहुंचे और कहा कि मामले में सेना नियमों का उल्लंघन हुआ है.
पंचाट के मुखिया न्यायमूर्ति ए के माथुर ने हालांकि उन्हें तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया और कहा, ‘‘आपका एवीएसएम और पीवीएसएम मेडल आपको पवित्र नहीं बनाता.’’ माथुर ने यह टिप्पणी तब दी जब प्रकाश की वकील ज्योति सिंह ने सैन्य कानून 123 के तहत लगाये गये आरोपों और उन्हें पश्चिमी कमान से संबद्ध किये जाने के आदेश को खारिज करने करवाने के लिए सशस्त्र बल न्यायाधिकरण को याचिका दी.
प्रकाश ने आरोप लगाया कि मामले में पूर्वी कमान द्वारा चलायी गयी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी सेना नियम 180 का उल्लंघन है. इस नियम के तहत प्रभावी अधिकारी को कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में गवाहों से पूछताछ करने का अवसर दिया जाता है. प्रकाश की ओर से पेश हुई वकील ज्योति सिंह ने कहा कि कोर्ट आफ इंक्वायरी में सभी 14 गवाहों ने प्रकाश की अनुपस्थिति में अपने बयान दर्ज करवाये.
प्रकाश को उनसे पूछताछ करने का मौका नहीं दिया गया. वकील ने प्रकाश के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को खारिज करने के लिए ये दलीलें दी. सेना कानून 123 के तहत सेना कर्मियों पर सेवानिवृत्ति के बाद महज तीन साल के भीतर ही मुकदमा चलाया जा सकता या दंडित किया जा सकता है. ज्योति ने सेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर द्वारा प्रकाश को प्रशासनिक कार्रवाई के लिए कारण बताओ नोटिस दिये जाने के बाद उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के बारे में सेना प्रमुख का मन एकाएक बदल जाने पर सवाल उठाया. प्रकाश ने कारण बताओ नोटिस का 22 जनवरी को जवाब दिया था.
उन्होंने दावा कि सेना मुख्यालय की नीति के अनुसार सेना प्रमुख किसी मामले में किसी कर्मी के खिलाफ एक बार प्रशासनिक कार्रवाई का आदेश देने के बाद उसे अनुशासनात्मक कार्रवाई में बदल नहीं सकते हैं. न्यायमूर्ति माथुर ने कहा कि सेना प्रमुख मामले की योग्यता के आधार पर अपनी नीतियों को बदल भी सकता है.