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मान्यता पाए बगैर भारत से मेलजोल बढ़ा रहा तालिबान, क्या किसी कॉमन दुश्मन की काट है ये रिश्ता?

भारत की तालिबान के साथ हाल में हुई मुलाकात को पाकिस्तान की कूटनीतिक हार की तरह देखा जा रहा है. लेकिन क्या ऐसा वाकई है? इस्लामाबाद के साथ-साथ ढाका से तनाव के बीच दिल्ली लगातार तालिबान संग बातचीत बढ़ा रही है. ये बात अलग है कि हमने एक सरकार बतौर तालिबान को मान्यता अब भी नहीं दी, बल्कि रिश्ते में छोटे-छोटे कदम ले रहे हैं.

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तालिबान को भारत से अब तक कूटनीतिक दर्जा नहीं मिल सका. (Photo- AFP)
तालिबान को भारत से अब तक कूटनीतिक दर्जा नहीं मिल सका. (Photo- AFP)

साल 2021 के बीच अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार को हटाकर तालिबान ने देश संभालना शुरू किया. कुछ समय पहले ही अमेरिकी सेना ने देश छोड़ा था. तालिबान का आतंकी इतिहास देखते हुए लगभग सारे देशों ने उससे दूरी बना ली. यानी एक पूरे देश की सरकार को ही मानने से इनकार कर दिया. भारत ने भी अब तक उसे डिप्लोमेटिक झंडी नहीं दिखाई. लेकिन ये जरूर है कि हाल में उसने इससे मेलजोल बढ़ा लिया. बेबी स्टेप या फूंक-फूंककर कदम रखना- तालिबान को लेकर आखिर दिल्ली के मन में क्या चल रहा है?

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रिश्ते में लगातार आए उतार-चढ़ाव

चार साल पहले जब काबुल का राजपाट तालिबान के हाथ आया, भारत ने उससे दूरी बना ली. तब सोचा भी नहीं जा रहा था कि अफगानिस्तान से हमारे रिश्ते दोबारा सुधर सकेंगे. तालिबानी कट्टरता के साथ इसकी एक वजह ये भी थी कि वो पाकिस्तान के करीब था. साल 2001 से वहां यूएस की सेना आ गई, तब से दो दशक तब दिल्ली और काबुल एक बार फिर कूटनीतिक तौर पर जुड़े.

बनने-बिगड़ने के बीच संबंधों में हाल में नया मोड़ आया. भारत और तालिबान करीब आते लग रहे हैं. कुछ रोज पहले भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में वहां के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी से मीटिंग की. इस मीटिंग को भारत का पाक के खिलाफ बड़ा दांव माना जा रहा है. पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि बांग्लादेश और उनके संबंधों की काट के तौर पर भारत और तालिबान करीब आ रहे हैं. 

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taliban and india diplomatic relations should pakistan and bangladesh be worried

क्या वाकई तालिबान से रिश्ते सुधरे हैं

भारत फिलहाल तालिबान के साथ रिश्ते में छोटे-छोटे स्टेप ले रहा है. जैसे उसने हाल में अफगानी ठिकानों पर हुई पाक एयर स्ट्राइक की आलोचना की. इसके अलावा राजनयिकों की आपस में मुलाकात भी हो रही है. हालांकि उसने अब भी इस संगठन को एक देश की सरकार के तौर पर मान्यता नहीं दी है. 

मान्यता न मिलने के पीछे भी उसका बर्बर इतिहास कारण

नब्बे के दशक में इस संगठन ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया. यहां से देश पर चरमपंथी ताकतें राज करने लगीं. वे महिलाओं को बुरके में रहने और पुरुषों के बगैर घर से न निकलने को कहतीं. इस्लामिक कानून इतनी कट्टरता से लागू हुए कि मानवाधिकार लगभग खत्म हो गया. कट्टरता के इसी दौर में तालिबान को देशों ने आतंकी संगठन का दर्जा देना शुरू कर दिया.

हां-ना के बीच अटके हुए 

अफगानिस्तान पर तालिबानी राज के पहले दौर में केवल तीन देशों ने उसे स्वीकारा था- सऊदी अरब, यूएई और पाकिस्तान. अब भी इसे राजनैतिक मंजूरी देने को कम ही देश राजी हैं. जो तैयार हैं, वे भी लिहाज में इसे आंशिक मान्यता ही दे रहे हैं, जैसे चीन और रूस. पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अजरबैजान और खाड़ी देशों ने भी इसे काफी हद तक स्वीकार कर लिया है. लेकिन ये साफ नहीं है कि इन देशों में डिप्लोमेटिक मिशन पर तालिबानी कंट्रोल आ चुका. 

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taliban and india diplomatic relations should pakistan and bangladesh be worried photo Reuters

क्या होगा मान्यता मिलने पर 

आधिकारिक दर्जा देना वो कंडीशन है, जिसमें दो देश एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं. इसके बाद वे आर्थिक और राजनैतिक रिश्ते रख सकते हैं. दोनों के दूतावास होते हैं और वहां तैनात लोगों को डिप्लोमेटिक इम्युनिटी भी मिलती है. इसके बाद ही इंटरनेशनल लोन मिल पाता है. 

कौन देता है ये दर्जा 

आमतौर पर किसी भी देश का सुप्रीम लीडर अपने साथियों के साथ ये तय करता है. लेकिन यह प्रोसेस आसान नहीं. इसमें देखना होता है कि नई सत्ता हिंसक तो नहीं, या फिर कितने लीगल ढंग से आई है. साथ ही फॉरेन पॉलिसी भी देखनी होती है. मसलन, अगर भारत, तालिबान को स्वीकार ले तो क्या पड़ोसी देश उससे नाराज हो जाएंगे, या फिर क्या उसके राजदूत देश में आकर जासूसी करने लगेंगे. सारे पहलू देखने के बाद ही ये तय होता है.

बेबी स्टेप ले रहा देश

फिलहाल भारत ने उसे सरकार के तौर पर पूरी मान्यता तो नहीं दी है, लेकिन इस रास्ते पर चल निकला है, खासकर तालिबान के इस भरोसे पर कि वो कट्टरता से दूर रहेगा. लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं. दिल्ली और काबुल की ये भेंट-मुलाकातें पाकिस्तान समेत कई देशों की काट हो सकती है. जैसे चीन. पिछले साढ़े तीन सालों में जब बाकी देश तालिबान से कटे हुए थे, चीन ने इससे दोस्ती बढ़ाई और वहां इंफ्रास्ट्रक्चर पर भारी इनवेस्ट किया. अब ढाका से रिश्ते कमजोर पड़ने के बीच भारत भी अफगान में अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

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 taliban and india diplomatic relations should pakistan and bangladesh be worried photo AFP

द डिप्लोमेट की एक रिपोर्ट में लगभग चार सालों तक अफगानिस्तान में भारत के राजदूत रहे गौतम मुखोपाध्याय के हवाले से कहा गया कि देश एक तरह से खेल में वापसी कर रहा है. भारत काबुल में अपनी एंबेसी दोबारा खोल चुका. इससे वो जमीन पर नजर रख सकेगा और तय कर सकेगा कि रिश्ते में कितना आगे जाना संभव है. साथ ही ये भी ध्यान रखा जाएगा कि पाकिस्तान काबुल की आड़ में भारत के खिलाफ गतिविधियां न करने लगे. 

तालिबान के तेवर क्यों दिख रहे नए

नब्बे के बाद दोबारा सत्ता में वापसी उसके लिए बड़ा मौका है लेकिन वो तब तक अपने को स्थापित नहीं कर सकता, जब तक कि कुछ बड़े देश उसे दोस्त न मान लें. भारत मजूबत मित्र हो सकता है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि तालिबान पाकिस्तान से दूर रहे. पिछली बार वो पूरी तरह से इस्लामाबाद के असर में था. अब हालांकि तस्वीर अलग है. दोनों देशों के रिश्ते बेहद बिगड़े हुए हैं. ऐसे में तालिबान 'मैं बदल चुका', वाली इमेज लेकर भारत से जुड़ रहा है. 

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