लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी ने 'चाय की चौपाल' के बाद अब दक्षिण भारत में 'मछली का स्टॉल' लगाया है. तमिलनाडु में इस मोदी छाप स्टॉल के पीछे पार्टी का तर्क है कि यह उसे लोगों के करीब ले जाएगा. लेकिन फिलहाल इस स्टॉल पर मछुआरा समाज की जो प्रतिक्रिया आ रही है, उससे यही लगता है कि मछली का यह कांटा बीजेपी के गले में फंसने वाला है.
दरअसल, चुनाव के मद्देनजर एआईएडीएमके द्वारा चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के बाद बीजेपी भी प्रदेश में सक्रिय हो गई है. पार्टी ने मछुआरा समाज को आकर्षित करने के लिए मंगलवार को राज्य में मछली स्टॉल की शुरुआत की, लेकिन एक दिन बाद अब उसी वोट बैंक ने पार्टी की इस नीति का विरोध किया है.
मछुआरों के मुताबिक, बीजेपी जिस तरह स्टॉल लगाकर बाजार में सस्ती दर पर मछली बेच रही है, उससे मछली विक्रेताओं को परेशानी हो रही है. बाजार में अब उन पर भी कम कीमत में मछली बेचने का दवाब बन रहा है. मछली विक्रेता मनिवन्नन कहते हैं, 'अगर बीजेपी आगे ऐसे और स्टॉल लगाती है तो लोग हमसे भी कम कीमत पर मछली की मांग करेंगे. यह उनकी वोट नीति हो सकती है, लेकिन इससे हमें फायदा नहीं होगा.'
गौरतलब है कि तमिलनाडु में 2004 के बाद बीजेपी ने कोई खास तरक्की नहीं की है. ऐसे में पार्टी 'नमो मछली स्टॉल' के जरिए जनाधार बटोरने की कोशिश में जुटी है. पार्टी का कहना है कि यह स्टॉल उन्हें चेन्नई, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, नागापत्तिनम जैसे तटीय इलाकों में लोगों के करीब ले जाएगा.
बीजेपी राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य तमिलिसाई सौंदराजन कहते हैं, 'हम मछुआरों से मछली खरीद कर उसे कम कीमत पर गरीब लोगों में बेच रहे हैं. यह मोबाइल यूनिट है और इससे लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी बल्कि मछुआरों को लाभ होगा. जब अम्मा प्रदेश में अपने नाम पर कम कीमत पर खाद्य पदार्थ बेच सकती है तो हम क्यों नहीं?'
'यह राजनीति नहीं ट्रेड फेयर है'
राजनीति के इस ट्रेंड पर राजनीतिक विशेषज्ञ गणनि शंकरन कहते हैं, 'राजनेताओं ने राजनीति को बिजनेस बना दिया है. यह कोई आइडियोलॉजी नहीं है. यह सिर्फ ब्रांडिंग और बिजनेस है. इससे किसी को लाभ नहीं होने वाला है. यह किसी ट्रेड फेयर की तरह है, जिसमें स्टॉल लगाया जाता है. यहां भी ऐसा ही कुछ हो रहा है.'