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EXCLUSIVE: घाटा दिखाने वाली 2 लाख से ज्यादा कंपनियों को देना पड़ सकता है टैक्स

टैक्स चुराने वाली कंपनियां दरअसल सरकार के सामने दो तरह से अपना हिसाब किताब पेश करती हैं. पहला इनकम टैक्स के हिसाब से दूसरा कंपनी एक्ट के मुताबिक. ऐसी कंपनियां इनकम टैक्स में बहुत सारे खर्चे दिखाकर खुद को नुकसान में बताती हैं.

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टैक्स रेट
टैक्स रेट

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भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार एक और बड़ा कदम उठा सकती है. पहले नोटबंदी, फिर फर्जी कंपनियों का सफाया करने के बाद अब सरकार उन कंपनियों को टैक्स के दायरे में लाने की तैयारी कर रही है, जो जानबूझकर अपने बही खाते में घाटा दिखाकर टैक्स बचाती हैं. केंद्र सरकार ऐसी कंपनियों पर टैक्स का शिकंजा कस सकती है. सरकार इसके लिए न्यूनत वैकल्पिक टैक्स (मैट) के नियमों में बदलाव करने का विचार कर रही है. वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, आने वाले बजट या उसके बाद सरकार बही खाते में घाटा दिखाने वाली कंपनियों पर टैक्स लगा सकती है.

हालांकि प्रस्ताव के मुताबिक, वाकई में नुकसान उठाने वाली कंपनियों को सरकार टैक्स क्रेडिट पर रियायत दे सकती है. देश में ढाई लाख से ज्यादा ऐसी कंपनियां हैं जो जानबूझकर दशकों से खुद को घाटे में दिखा रही हैं. ये कंपनियां बैंकों से लोन लेती हैं और लंबे समय तक इनडायरेक्ट टैक्स भी देती आ रही हैं, लेकिन डायरेक्ट टैक्स यानी कॉर्पोरेट टैक्स नहीं देती हैं.

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कैसे होता है गोलमाल

टैक्स चुराने वाली कंपनियां दरअसल सरकार के सामने दो तरह से अपना हिसाब किताब पेश करती हैं. पहला इनकम टैक्स के हिसाब से दूसरा कंपनी एक्ट के मुताबिक. ऐसी कंपनियां इनकम टैक्स में बहुत सारे खर्चे दिखाकर खुद को नुकसान में बताती हैं. ठीक उसी समय कई कंपनियां भारी भरकम लाभांश यानी डिविडेंड बांटती भी नजर आती थी. ये कंपनियां कंपनी एक्ट के तहत आने वाले बही खाते में मुनाफा दिखाती थी. सरकार  आमदनी की इस दो तरफा रिपोर्टिंग के जरिए इनकम टैक्स बचाने वाली कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए चार दशक पहले न्यूनतम वैकल्पिक कर यानी (मैट) लेकर आई. अब उन सभी कंपनियों को टैक्स दायरे में लाने की तैयारी है जो जानबूझकर कंपनी एक्ट के तहत आने वाले बुक प्रॉफिट में भी बनावटी नुकसान दिखाने लगी हैं.

टैक्स एक्सपर्ट का मानना है कि इस तरह के टैक्स में कोई हर्ज नहीं है, हालांकि रेट नॉमिनल होना चाहिए. Institute of Chartered Accountants of India के पूर्व प्रेसिडेंट अमरजीत चोपड़ा कहते हैं, 'ऐसी कंपनियों पर टैक्स लगाने में कोई हर्ज नहीं है, आखिर वो देश के संसाधनों का फायदा उठा रही हैं चाहे वो पेडअप कैपिटल हो या बैंक से लोन हो. हां इतना जरूर है कि अगर कोई टैक्स लगता है तो उसका रेट बहुत कम होना चाहिए.'

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भारत में न्यूनतम टैक्स की शुरुआत साल 1983 से हुई तब उसे वैकल्पिक न्यूनतम कर यानी एएमटी कहा जाता था. बीच में कई बार नियमों में बदलाव आता रहा. 1991 में टैक्स से जुड़ी कई रियायतों को खत्म करने के बाद सरकार ने कहा कि ऐसे किसी न्यूनतम टैक्स की जरूरत नहीं है. हालांकि पांच साल बाद इसे दोबारा लागू किया गया और इसका नाम मिनमम ऑलटरनेटिव टैक्स (मैट) का नाम दिया. साल 1996-97 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि मैं कंपनियों पर न्यूनतम वैकल्पिक कर लगाने का प्रस्ताव पेश करता हूं. इनकम टैक्स नियमों के तहत हर तरह की छूट क्लेम करने के बाद अगर कंपनी की कुल कमाई बुक प्रॉफिट से तीस फीसदी कम होती है, ऐसे में कंपनी का कुल इनकम बुक प्रॉफिट का तीस फीसदी माना जाएगा और उसे उसी के हिसाब से टैक्स देना पड़ेगा.  

2001 में फिर से मैट में बदलाव हुआ. चुकाए गए टैक्स पर मिलने वाली छूट व्यवस्था (कैरीफॉरवर्ड) को खत्म कर दिया गया और तय हुआ कि कॉर्पोरेट और मैट में से जो भी रेट ज्यादा होगा कंपनियों को उसे चुकाना होगा.

2005 में मैट के नियमों में एक बार फिर फेरबदल हुआ और कंपनियों को इस बात की इजाजत दी गई कि वो पांच साल के भीतर टैक्स क्रेडिट का कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं. कैरी फॉरवर्ड की मियाद को दस फिर 15 साल कर दी गई. फिलहाल ये मियाद 15 साल की है.

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भारत में मैट का रेट 18.5 फीसदी है. हालांकि, कंपनियां मैट का हमेशा से विरोध करती रही हैं. लगातार बढ़ते रेट के अलावा कंपनियों की शिकायत है कि बुक प्रॉफिट के रख रखाव में दिक्कत होती है. हालांकि, कुछ विशेष उद्योगों खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर में सरकार ने मैट में रियायत दी है, लेकिन वित्त मंत्रालय का मानना है कि देश में लाखों कंपनियां जानबूझकर घाटा दिखाकर लगातार सरकार को चूना लगा रही हैं.

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वित्त मंत्रालय का मानना है कि ऐसी कंपनियों पर को टैक्स के दायरे में लने की जरूरत है, ताकि वो मिनिमम टैक्स जरूर दें. आमदनी और खर्च यानी फिसक्ल डेफिसिट का दबाव झेल रही सरकार के लिए यह जरूरी है कि सरकार शेल कंपनियों के सफाया के बाद जानबूझकर टैक्स से भागने वाली कंपनियों को डायरेक्ट टैक्स के दायरे में लाए.

सत्रहवीं लोकसभा का सत्र 17 जून से लेकर 26 जुलाई तक चलेगा, जिसमें चार जुलाई को आर्थिक सर्वे और अगले दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पूरक बजट पेश करेंगी. ऐसे में मुमकिन है कि वित्तमंत्री सरकार के इरादों का ऐलान कर दें.

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